बुधवार, 9 जुलाई 2008

खुदा खैर करे


इश्क में हम हैं गिरफ्तार खुदा खैर करे
डैडी उनके हैं हवलदार खुदा खैर करे
इतनी गरमी पड़ी इस बार खुदा खैर करे
मेढ़की तक पड़ी बीमार खुदा खैर करे
काम होता नहीं आजकल दफ्तर में कहीं
हो गये दिन सभी रविवार खुदा खैर करे
ढ़ूंढने आदमी निकला था जमाने में वफा
वक्त खुद हो गया गद्दार खुदा खैर करे
मेंहरबा मीडिया कुबड़ों पे हुआ है ऐसा
बौनी लगने लगी मीनार खुदा खैर करे
देखते-देखते इस दौर के मेकअप का कमाल
हुस्न लगने लगा खूंखार खुदा खैर करे
शेखचिल्ली न मिला एक भी नीरव-सा यहां
इश्क में खो दिया घर-बार खुदा खैर करे।
पं.सुरेश नीरव

दीवाने हजारों हैं


हास्य-गजल-
इक पिद्दी-सी लड़की के दीवाने हजारों हैं
है उम्र फक़त सोलह अफसाने हजारों हैं
रिश्वत पे यहां कोई सरचार्ज नहीं लगता
हम जैसों की इनकम पर जुर्माने हजारों हैं
ढूंढे से नहीं मिलता नमकीन यहां अच्छा
बस्ती में मगर अपनी मयखाने हजारों हैं
आंसू की नुमाइश तो आंखों में लगी देखी
हंसने की खताओं पर हर्जाने हजारों हैं
बीवी को सजावट का सामान नहीं मिलता
मेकअप के खुले घर-घर बुतखाने हजारों हैं
कल ही तो शपथ लेकर सालेजी बने मंत्री
अब केस दरोगा पर चलवाने हजारों हैं
इंपोर्ट विदेशों से करना है हमें गोबर
गोबर की जगह नेता तुलवाने हजारों हैं
मुद्दत से खड़े नीरव बस्ती में यहां तन्हा
अपना ना मिला कोई बेगाने हजारों हैं।
पं. सुरेश नीरव

मंगलवार, 1 जुलाई 2008

दांतों का सेट मुंह से बाहर गिरा निकल के

हास्य-ग़ज़ल-
औंधे गिरे डगर में छिलके से वो फिसल के
दांतों का सेट मुंह से बाहर गिरा निकल के
शायर निकल के आया पतली गली ले चल के
इस हादसे पे पेले कुछ शेर यूं गजल के
गड्ढे भरी है सड़कें चिकना बहुत है रस्ता
है उम्र भी फिसलनी चला ज़रा संभल के
पैदल हो अक्ल से तुम और आंख से भी अंधे
क्या तीर मार लोगे इंसानियत पे चल के
हालात हैं निराले मेरे नगर के यारो
पानी तो है नदारद बिल आ रहे हैं नल के
फिर इस चुनाव में भी डूबी है इनकी लुटिया
आया ना रास कोई दल देखे सब बदल के
वो और हैं जिन्होंने गिरवी रखा कलम को
नीरव बने न भौंपू अब तक किसी भी दल के।
पं. सुरेश नीरव

रविवार, 29 जून 2008

गुस्सा गधे को आ गया

बात उल्लू ने कही गुस्सा गधे को आ गया
प्यार कहते हैं किसे है कौन से जादू का नाम
आंख करती है इशारे दिल का हो जाता है काम
बारहवें बच्चे से अपनी तेरहवीं करवा गया
बात उल्लू ने कही गुस्सा गधे को आ गया
गुस्ल करवाने को कांधे पर लिए जाते हैं लोग
ऐसे बूढे शेख को भी पांचवी शादी का योग
जाते-जाते एक अंधा मौलवी बतला गया
बात उल्लू ने कही गुस्सा गधे को आ गया
जबसे बस्ती में हमारे एक थाना है खुला
घूमता हर जेबकतरा दूध का होकर धुला
चोर थानेदार को फिर आईना दिखला गया
बात उल्लू ने कही गुस्सा गधे को आ गया
चांद पूनम का मुझे कल घर के पिछवाड़े मिला
मन के गुलदस्ते में मेरे फूल गूलर का खिला
ख्वाब टूटा जिस घड़ी दिन में अंधेरा छा गया
बात उल्लू ने कही गुस्सा गधे को आ गया।
पं. सुरेश नीरव

मंगलवार, 24 जून 2008

सुरां न पीबति सः असुरः।

सुरा की महत्ता को लेकर मन हुआ कि सुरा के समर्थन में कुछ तथ्य मैं भी प्रस्तुत कर दूं। यथा- महर्षि कश्यप की दो पत्नियां थीं- दीति और अदीति। दीति के पुत्र दैत्य तथा अदीति के पुत्र देवता कहलाए। असुरों ने सुरा न पीने का संकल्प लिया मगर सुरों ने उस प्रतिबंध को नहीं माना क्योंकि उनके पिता महर्षि कश्यप को इससे परहेज नहीं था। संस्कृत में कश्य का अर्थ ही शराब होता है। (कश्यःशराब,अपःपीनेवाला।) जिस जगह बैठकर देवता शराब का उत्कर्षण करते थे यानी आसव का उत्कर्षण (उत-सव) करते थे, वह क्रिया ही उत्सव कहलाई। मंड की बनी शराब, जिस स्थान पर देवता पीते थे, वह जगह ही मंडप कहलाई। और पीनेवालों का समूह मंडली कहलाया। शराब को सुरा भी कहा जाता है और ठीक वैसे ही जैसे मद्य को पीनेवाला मद्यप कहलाता है वैसे ही सुरा को पीनेवेले को सुर और न पीनेवाले को असुर कहा गया। सामवेद में तो यह तक कह दिया गया कि- सुरां न पीबति सः असुरः। हिंदू धर्म में गाय का मांस वर्जित है, शराब नहीं। इस्लाम में शराब पर प्रतिबंध है मांसाहार पर नहीं और ईसाइयत में न शराब पर प्रतिबंध है और न ही मांसाहार पर। फारसी में स का उच्चारण ह होता है जैसे सप्ताह को हफ्ता कहा जाता है। वैसे ही असुर को अहुर कहा जाता है। अहुर राज्य असीरिया से अफगान और ईरान तक फैला था और नासिरयाल यहां का बादशाद था जो अपने को अहुर कहता था। अहुरमत्जा के महत्व को सभी जानते हैं। सुरा,सीता,प्रसन्ना,मधु, कादंबरी, आसव वारुणी, सौ से अधिक शब्द शराब के लिए संस्कृत साहित्य में उपलब्ध हैं जो इस बात को प्रतीक हैं कि सुरों के समुदाय में सुरा का प्रचलन कितना था ? सुरा का ईश ही सुरेश कहलाता है जो तीस से अधिक सरक (पैग ) लगाकर ही सुर में आता है। सोमपान ही सामवेद में साम है और बिना साम के सामंजस्य कहां ? इसलिए है देवपुत्रो समस्त देवी-देवताओं के पावन स्मरण के साथ आप पतितपावनी वारुणी का प्रतिदिन पवित्र भाव से आचमण करें और अपने देवत्व में श्रीवृद्धि करें। ओम वारुणाय नमः।
पं. सुरेश नीरव

सोमवार, 23 जून 2008

दो कते

खुले में कहीं वो नहाने लगेंगे
बदन पर जे साबुन लगाने लगेंगे
कसम से खुदा की मैं कहता हूं यारो
तो गूंगे भी कोरस में गाने लगेंगे
००००
जो बूढ़े भी नजरें लड़ाने लगेंगे
वो मंजर भी कितने सुहाने लगेंगे
किया इश्क का न बुढ़ापे में लफड़ा
तो बच्चों को डैडी जनाने लगेंगे।
पं. सुरेश नीरव
मो.-९८१०२४३९६६

खुद चूने का पान हुए संयोजकजी

हास्य-ग़ज़ल
कवियों में मलखान हुए संयोजकजी
रसिकों के रसखान हुए संयोजकजी
इतनी तंबाकू-कत्थे से की यारी
खुद चूने का पान हुए संयोजकजी
चुनचुनकर सब फ्लाप कवि, एक टीम रची
खुद उसके कप्तान हुए संयोजकजी
मंचखोर तुक्कड़ कवियों के टापू में
मनचाहे वरदान हुए संयोजकजी
भरते सुबहो-शाम जिन्हें मिलकर चमचे
ऐसे कच्चे कान हुए संयोजकजी
मरियल कवि को मिला लिफाफा मोटा-सा
मंद-मंद मुस्कान हुए संयोजकजी
पाल-पोसकर बड़े किये चेले-चांटे
गुरगों के भगवान हुए संयोजकजी
पशुमेला क्या लालकिला तक चर डाला
भैया बड़े महान हुए संयोजकजी
फसल बचाएं मठाधीश की चिड़ियों से
देखो स्वयं मचान हुए संयोजकजी
नीरव से मुठभेड़ हुई जब करगिल में
पिटकर पाकिस्तान हुए संयोजकजी।
पं. सुरेश नीरव
मो.९८१०२४३९६६





बुधवार, 18 जून 2008

कर्ज में डूबे हैं फिर भी शान बाकी है


जम के चोरी कीजिए दूकान बाकी है
छोड़िए कटपीस पूरा थान बाकी है
बह गई कश्ती अभी तूफान में
कर्ज में डूबे हैं फिर भी शान बाकी है
रुक न पाएगी कभी फरमाइशें उनकी
जब तलक मेरे बदन में जान बाकी है
वैसे तो चलती है कैंची-सी जुबां उनकी
चुप रहेंगे मुंह में जब तक पान बाकी है
लिख दिए मिसरे ग़ज़ल के उनके होंठों पर
उस फसाने का मगर उन्वान बाकी है
है फरिश्तों से भी ऊंचा आज वो इनसान
जिसमें थोड़-सा अभी ईमान बाकी है
इस कदर जज्बात को निगला मशीनों ने
यंत्र-सा चलता हुआ इनसान बाकी है
कान में नीरव के बोला बेहया लीडर
लूटने को पूरा हिंदुस्तान बाकी है।
पं. सुरेश नीरव
मो.-९८१०२४३९६६

मंगलवार, 17 जून 2008

तो खफा हो बैठे।

हास्य-ग़ज़ल
उनकी कुर्सी को हिलाया तो खफा हो उठे
पिंड मुश्किल से छुड़ाया तो खफा हो बैठे
शेर जिनके वो सुनाते थे बताकर अपने
अस्ल शायर से मिलाया तो खफा हो बैठे
दिल के नुस्खों के बड़े चर्चे सुने थे हमने
चीरकर दिल जो दिखाया तो खफा हो बैठे
चाय हर रोज बनाकर पिलाते थे उन्हें
इक गिलास उनसे मंगाया तो खफा हो बैठे
माल उड़वाया महीनों जिन्हें ले ले के उधार
आज बिल उनको थमाया तो खफा हो बैठे
उमके जूड़े को हिमालय सा सजाकर हमने
फूल गोभी का लगाया तो खफा हो बैठे
आंखों-आंखों में चुराया था जिन्होंने हमको
घर से जब उनको उड़ाया तो खफा हो बैठे
घर में नीरव के निठल्लों का हुआ जब जमघट
दाल का पानी पिलाया तो खफा हो बैठे।
पं. सुरेश नीरव
९८१०२४३९६६

सोमवार, 16 जून 2008

निगाहों को बड़ा दिलकश नजारा मिल गया होता

cकिसी अंधे को लाठी का सहारा मिल गया होता
अगर उस दिन तेरा छत से इशारा मिल गया होता
न लेकर बैंड तुम आते न बजता मेरी शादी में
न कश्ती डूबती मेरी किनारा मिल गया होता
न भरते कान डैडी के तुम्हारे घर छुपे दुश्मन
जन्मपत्री में दोंनों का सितारा मिल गया होता
जुटाकर ईंट रोड़ों को बना लेते नया कुनबा
अगर भानुमती का पिटारा मिल गया होता
बगल में महिला कॉलेज के जो अपना घर बना होता
निगाहों को बड़ा दिलकश नजारा मिल गया होता
सहर होते ही मंदिर में जो जाती तू भजन करने
तेरे भजनों के सुर -में- सुर हमारा मिल गया होता
छुड़ाकर पिंड कविता से बड़ा अच्छा किया नीरव
नहीं तो मंच पर नीरव दुबारा मिल गया होता।
पं. सुरेश नीरव
मो.९८१०२४३९६६



रविवार, 15 जून 2008

तबीयत मगर है आज भी सलमान खान की।


बरसाती-ग़ज़ल
छत टपक रही है मेरे बूढ़े मकान की
बरसात लाई मुश्किलें सारे जहान की
बादल की टंकियों से क्यों पानी टपक रहा
टोंटी चुरा ली क्या किसी ने आसमान की
व्हिस्की के संग मंगोड़े हों रिमझिम फुहार में
फरमाइशें तो देखिए ठलुए जवान की
ड्रायर लगा- लगा के सुखानी पड़ी उसे
बारिश में भीगी इस कदर दाढ़ी पठान की
भेजे में गूंजती है मेढ़क की टर्र-टर्र
बारिश में रिपेयरिंग क्यों कराई कान की
भीगे बदन फुहार में लहरा के आ गये
रौनक जवान हो गई भुतहा दुकान की
तासीर देखिए ज़रा खैनी के पान की
बुड्ढा निकालता है अकड़ नौजवान की
नाक- कान -बाल - सभी खस्ता हाल हैं
तबीयत मगर है आज भी सलमान खान की।
पं. सुरेश नीरव
मों.९८१०२४३९६६

शुक्रवार, 13 जून 2008

उधारी खूब तुम रखना

एक कता...
झिड़कना मत झिड़कने में कोई अपना नहीं रहता
तुम्हें वो जड़ से खोदेगा जो मुंह से कुछ नहीं कहता
सभी लोगों से मिलने में उधारी खूब तुम रखना
उधारी का महल कर्जे की तोपों से नहीं ढहता।
पं. सुरेश नीरव

गुरुवार, 12 जून 2008

तुम्हारी याद आती है


हास्य-गजल
उठाकर क्राकरी महरी किचन में जब गिराती है
मैं आपे में नहीं रहता तुम्हारी याद आती है
निकट तोते के जब तोती कोई इठला के जाती है
फुदकता हूं मैं मेढक बनके तेरी याद आती है
किसी भी ठूंठ पर तितली जब अपने पर हिलाती है
सिसकते दिल के गुलदस्ते पे बिजली कौंध जाती है
पड़ोसन जब भी बल्बों को जलाती है बुझाती है
मेरा दिल लुपलुपाता है तमन्ना लड़खड़ाती है
हजामत को नहीं पैसे बढ़ी देखो मेरी दाढ़ी
रुपय्यों की हुई तंगी तुम्हारी याद आती है
अदा से गर्म डोसे पर वो जब चटनी लगाती है
गरीबों को कभी नीरव नहीं मिलता कोई साथी
है दिल की पासबुक खाली तुम्हारी याद आती है।
पं. सुरेश नीरव
मों-९८१०२४३९६६

बुधवार, 11 जून 2008

जवानी का हंसी सपना तुझे जब याद आएगा


हास्य-गज़ल
जवानी का हंसी सपना तुझे जब याद आएगा
सिसककर टूटी खटिया पर पड़ा तू भुनभुनाएगा
पुराना ठरकी है बूढ़ा न हरगिज बाज आएगा
दिखी लड़की तो नकली दांत से सीटी बजाएगा
निकल जाए हमारा दम बला से चार बूंदों में
मग़र हमको हकीम अपनी दवा पूरी पिलाएगा
पहन पाया न बरसों से बिचारा इक नई निक्कर
बनेगा जब भी दूल्हा वो नई अचकन सिलाएगा
है अपना दूधिया जालिम मसीहा है मिलावट का
भले ही कोसते रहिए हमें पानी पिलाएगा
जड़ें काटेगा पीछे से जो हँस के सामने आया
खुदा ने दी न चमचे को वो दुम फिर भी हिलाएगा
मिली हैं हूर जन्नत में मगर मिलती नहीं लैला
खुदेगी कब्र जब तेरी तो चांद अपनी खुजाएगा
सनमखाने में दीवाने सजा ले अपने वीराने
खिला दे टॉफी बुलबुल को मज़ा जन्नत का आएगा
पुराना-सा फटा, मैला लिए हाथों में इक थैला
बढ़ा के अपनी दाढ़ी मंचों पर गजल तू गुनगुनाएगा
मिले मेले में दुनिया के थके, हारे, बुझे चेहरे
करामाती है बस नीरव जो रोतों को हँसाएगा।
पं. सुरेश नीरव
मो.-९८१०२४३९६६

मंगलवार, 10 जून 2008

हमको साथी भी ऐसे मिले


गजल
हमको साथी भी ऐसे मिले
जैसे राजा को टूटे किले
पत्तियां,फूल, फल सब झरे
पेड़ आंधी में ऐसे हिले
हमको चलना भी तो आ गया
पांव पत्थर पे जब से छिले
चोट-दर-चोट खाकर हँसे
खत्म होंगे न ये सिससिले
अपनी ही गफलतों में रहे
कद्रदानों से कैसे गिले
हम थे नीरव मुखर हो गये
आप जब से हैं हम से मिले।
पं, सुरेश नीरव
मों.९८१०२४३९६६

सोमवार, 9 जून 2008

इन हमामों से हर कोई धुलकर गया

हास्य-गज़ल
कोई छुपकर गया कोई खुलकर गया
इन हमामों से हर कोई धुलकर गया
जिंदगी में किया जो भी अच्छा-बुरा
वो सभी कुछ तराजू पे तुलकर गया
नगमें गाती नहीं अब वो इकरार के
इतना गमगीन बुलबुल को बुल कर गया
हमको ऐसा हुनरमंद मिस्त्री मिला
जल रही थी जो बत्ती वो गुल कर गया
उनकी आंखों में दरिया है तेजाब का
जिसमें पत्थर भी डूबा तो घुलकर गया
बच्चे पैदा किये और खुद मर गया
काम जीवन में इतना वो कुल कर गया
सीनाजोरी ज़रा देखिए चोर की
सीनाताने वो लॉकअप से खुलकर गया
शौक से टे्न की चेन वो खींचता

क्यों पजामे के नाड़े को पुल कर गया
फ्लाप नीरव लगी फिल्म की हिरोइन
रोल हीरो मगर ब्यूटीफुल कर गया।
पं. सुरेश नीरव
मो.९८१०२४३९६६

शनिवार, 7 जून 2008

चंबल का दूसरा चेहरा भी है..


चंबल का दूसरा चेहरा भी है..

.चंबल के बीहड़ों की जब भी चर्चा चलती है तो अनायास ही बागी सरदार मान सिंह से शुरू हुई एक परंपरा लाखन सिंह, रूपा, पुतली बाई से चलकर मोहर सिंह, माधव सिंह,मलखान सिंह से होती हुई निर्भय गुर्जर तक पहुंचकर थोड़ा रुकती है और भविष्य के नामों के लिए बांहें फैलाने लगती है। मगर चंबल की यह घाटी महर्षियों की तपोभूमि और क्रंतिकारियों तथा कलाकारों की साधना स्थली रही है, यह बात दुर्भाग्य से हर बार अचीन्ही रह जाती है। पौराणिक गाथाओं की आभा से दीप्त-प्रदीप्त महर्षि भिंडी ( जिनके नाम से भिंड नगर बसा) और गालव ( जिनके नाम से ग्वालियर नगर बसा) की तपःस्थली के ही पुण्य-प्रसून थे-संगीत सम्राट तानसेन और बैजू बावरा। रायरू गांव की गूजरी, जो आगे चलकर राजा मानसिंह की रानी मृगनयनी बनती है,जिसने अपने पराक्रम से यवन सेना को पराजित करके तोमर वंश की यशःगाथा को इतिहास में दर्ज कराया था, वह इसी चंबल की माटी की बेटी थी। इसी चंबल की माटी के पुत्रों को बागी संबोधन का क्रांतिकारी चेहरा देनेवाले मैनपुरी षड्यंत्र कांड के पं.गैंदालाल दीक्षित ने मई गांव में ही बैठकर क्रांति का ताना-बाना बुना था और उनके शिष्य काकोरी कांड के महानायक पं. रामप्रसाद बिस्मिल (जिनके बाबा तंवरघारःअंबाह के थे ) ने भदावर राज्य के पिनाहाट और होलीपुरा में फरारी के दिनों में मवेशी चराते हुए मनकी तरंग और कैथराईन-जैसी कृतियों का सृजन किया था। प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की जब पूरे देश में लौ बुझने लगी थी तो चंबल और यमुना के दोआब में रूपसिंह और निरंजन सिंह ने तात्याटोपे और शाहजादा फिरोजशाह को साथ लेकर फिरंगी सेना को धूल चटाते हुए यहां आजादी का परचम फहराकर एक नया इतिहास लिख दिया था। यहां के लोकगीत लंगुरिया और सपरी में चंबल की माटी की सौंधी-सौंधी गंध महकती है। और शस्त्रीय संगीत में ग्वालियर घराना क्या हैसियत रखता है, यह बताना निहायत अनुत्पादक श्रम होगा। इस क्षेत्र के बुद्धिजीवी, चंबल के इस सांस्कृतिक आयाम को, जो कि दुर्भाग्यवशात् अचीन्हा ही रह जाता है,व्यापक फलक पर लाकर सर्वव्यापी बनाएं,इस सार्थक प्रयास की मैं उनसे पूरी शिद्दत के साथ उम्मीद करता हूं...एवमस्तु।।
विनयावनत
पं. सुरेश नीरव

शुक्रवार, 6 जून 2008

हम कहां जाएं


हास्य-गजल
छुपे हैं चोर थाने में पकड़ने हम कहां जाएं
दरोगा बन गया साला अकड़ने हम कहां जाएं
पलस्तर चढ़ गया पक्का हमारे दोनों हाथों में
टंकी है नाक पर मक्खी रगड़ने हम कहां जाएं
लगा है शौक पढ़ने का हमें यारो बुढ़ापे में
बंधी भैंसें मदरसे में तो पढ़ने हम कहां जाएं
खुजाकर सिर किया गंजा ना आई बात भेजे में
लिया है जन्म अगड़ों में पिछड़ने हम कहां जाएं
ना बिजली है ना पानी है ना सीबर है ना सड़के हैं
बसाया घर है यू.पी में उजड़ने हम कहां जाएं
कटे हैं सीरियल में दिन गुजारी रात फिल्मों में
जो नीरव घर में हो टी.वी. बिगड़ने हम कहां जाएं
पं. सुरेश नीरव
मो.९८१०२४३९६६

गुरुवार, 5 जून 2008

रिश्ता किसी ने खूब निभाया है प्यार का

हास्य गजल
रिश्ता किसी ने खूब निभाया है प्यार का
तोहफे में उसने भेजा है मच्छर बुखार का
खोया गधा है देखिए फिर से कुम्हार का
शायद मजाक उसने उड़ाया है प्यार का
इक डब्बा खाली भेज के हमको अचार का
यारों ने फार्मूला सिखाया है प्यार का
नामोनिशान मिट गया उसके बुखार का
चूरन कुछ ऐसा हमने चटाया है प्यार का
जब उनका खत पढ़ा हमें मिरगी-सी आ गई
इठला के उसने जूता सुंधाया है प्यार का
इक चॉकलेट खाते ही कर डाली फिक्स डेट
पागल ने कितना रेट घटाया है प्यार का
गन्ने-सा रोज चूस के हमको किया रिजेक्ट
कैसा जनाजा उसने उठाया है प्यार का
नीरव की टूटी खाट भी नीलाम हो गई
जिस दिन से चैक उसने भुनाया है प्यार का।
पं. सुरेश नीरव
मो.९८१०२४३९६६


क्या आप कल के लिए

क्या आप कल के लिए
हास्य-गजल
तुक भिड़एंगे क्या आप कल के लिए
गीत गाएंगे क्या आप कल के लिए
नाश्ते में कनस्टर को खाली किया
भर के लाएंगे क्या आप कल के लिए
आज रेंके तो कर्फ्यू शहर में लगा
गुल खिलाएंगे क्या आप कल के लिए
आखिरी थी अठन्नी उड़ी इश्क में
अब बचाएंगे क्या आप कल के लिए
दिल में जो कुछ भी था हिनहिनाया सभी
बिलबिलाएंगे क्या आप कल के लिए
जितना मक्खन था सब मल दिया बॉस को
दुम हिलाएंगे क्या आप कल के लिए
पूरा वेतन महाजन के हत्थे चढ़ा
अब पकाएंगे क्या आप कल के लिए
इक पजामा था नीरवजी चोरी हुआ
अब सिलाएंगे क्या आप कल के लिए?
पं. सुरेश नीरव
मो.९८१०२४३९६६

मंगलवार, 3 जून 2008

आज का इनसान


गजल
सलवटोंवाला बिछौना आज का इनसान
वासना का है खिलोना आज का इनसान
क्यों किसी शैतान की तीखी नजर लगती
हो गया काला डिठोना आज का इनसान
धमनियों में है तपिश चढ़ती जवानी की
ढूंढता है कोई कोना आज का इनसान
ओढ़ली जबसे शरारत बेचकर ईमान
दूर से लगता सलौना आज का इनसान
नाचती है अब सियासत देश में नंगी
है मिनिस्टर-सा घिनौना आज का इनसान
पूरे आदमकद हुए हैं पाप के पुतले
और होगा कितना बौना आज का इनसान
आ गया नीरव चलन में कैसा तिरछापन
हो गया बिल्कुल तिकोनाआज का इनसान।
पं. सुरेश नीरव
मो.९८१०२४३९६६

रविवार, 1 जून 2008

लिख देंगे।

हास्य-गजल-
रोज-रोज के झगड़ों पर अब हम किताब लिख देंगे
तेरे हर इक लव लैटर का हम जवाब लिख देंगे
तेरी मम्मी को नुस्खे में हम जुलाब लिख देंगे
तेरे डैडी को हड्डी में हम कबाब लिख देंगे
मेकअप करके मिलीं अगर खानाखराब लिख देंगे
जिस दिन तुमने जेब न काटी इंकलाब लिख देंगे
हब्शी-से तेरे होंठों को लाजवाब लिख देंगे
जब भी याद करोगे हम हाजिर जनाब लिख देंगे
सिकुड़े से सींकिया बदन पर हम शवाब लिख देंगे
निचुड़े गालों पर उंगली से हम गुलाब लिख देंगे
तेरे तन की चुस्त पैंट को हम जुराब लिख देंगे
तेरे स्लीवलैस ब्लाउज को हम शराब लिख देंगे
मावस जैसे इस मुखड़े को माहताब लिख देंगे
नीरवजी अनपढ़ धन्नो को मैमसाब लिख देंगे।
पं. सुरेश नीरव
मो.-९८१०२४३९६६

शुक्रवार, 30 मई 2008

सुधरने के लिए

हास्य-गजल
शहर को भागा है गीदड़ आज मरने के लिए
लोमड़ी ने भर दिया उसको सुधरने के लिए
चूहा लाया है कुतर के सुंदरी की साड़ियां
मूड में चुहिया खड़ी सजने-संवरने के लिए
जोतकर खेतों को अपने तू खुशी से फूल जा
बैठे है तैयार नेता फस्ल चरने के लिए
जितने ठसके से दिए जाते हैं आये दिन बयान
उतने ही माहिर हैं सब उनसे मुकरने के लिए
कल मिनिस्टरजी ने फोड़ा पुल पे जा के नारियल
चोट काफी थी यही पुल को बिखरने के लिए
गिफ्ट में निकला टिकिट कश्मीर से इराक का
ये सबब काफी नहीं क्या मेरे डरने के लिए
एक कुर्सी तक कहां नीरव को हो पायी नसीब
उनको सिंहासन मिला खुलकर पसरने के लिए।
पं. सुरेश नीरव
मो.९८१०२४३९६६

हम भी फ्लाप तुम भी फ्लाप

हास्य-गजल
हम भी फ्लाप तुम भी फ्लाप
तिकड़म में पर दोनों टॉप
मिलकर खेलें कविता-कविता
मैं बच्चन तो दिनकर आप
उसे बना देंगे आलोचक
जो हो जनम से झोलाछाप
अपनों को काटेंगे झट से
आस्तीन के हम हैं सांप
मक्खनबाजी के मंत्रों का
सुबह-शाम करते हैं जाप
माल पचा लेना औरों का
नहीं मानते बिल्कुल पाप
हुनर हमारा सिर्फ झटकना
सम्मानों के लॉलीपॉप
हम भी फ्लाप तुम भी फ्लाप
तिकड़म में पर दोनों टॉप।
पं. सुरेश नीरव
मो.-९८१०२४३९६६

बुधवार, 28 मई 2008

लीडर को आम जलसे में गैंडे की खाल दी


हास्य गजल
जालिम ने देस्ती की वो बढिया मिसाल दी
खटिया भी अपनी कल मेरे आंगन में डाल दी
इक हादसे में कट गई कल जेब यार की
लेकर तलाशी रूह हमारी खंगाल दी
दिखलाया धूमधाम से पब्लिक ने आईना
लीडर को आम जलसे में गैंडे की खाल दी
महबूब को ये सोचा था कुल्फी खिलाएंगे
कुल्फी के रेट ने तो हवा ही निकाल दी
मिलती नहीं है क्रीम मुझे मेरे ब्रांड की
झुंझलाके उसने कल पे मुलाकात टाल दी
कमजोर दिल के लोग भी हैं इश्क के मरीज
फिर क्यों खुदा ने हुस्न को ये मस्त चाल दी
ये कहके सब उतार दो कर्जा विदेश का
मंत्री पे एक बच्चे ने गुल्लक उछाल दी
पीकर कई मरे पढ़ी नीरव ने जब खबर
अपनी बची शराब मुझे उसने ढाल दी।
पं. सुरेश नीरव
मो.९८१०२४३९६६

सोमवार, 26 मई 2008


दोस्तों के लिए...

ये न पूछो कि किस-किस ने धोखे दिये
वरना अपनों के चेहरे उतर जाएंगे।


०००दोस्त् जीवन में प्यारे वही है सगा
मौका पड़ते ही झट से जो दे दे दगा
तेरी चादर थी औरों से ज्यादा सफेद
इसलिए दाग दामन पे तेरे लगा।
०००
उम्र गुजरी है आजमाने में
कोई अपना नहीं जमाने में
दोस्त मुश्किल से एक-दो होंगे
इतने बैठे हैं शामियाने में
परख दोस्तों की होती है तभी
टांग अपनी फंसी हो थाने में
पहले आते तो मदद कर देते
टाल दी बात यूं बहाने में
फ्राड-ही-फ्राड दूर तक फैले
खोटे सिक्के हैं बस खजाने में।
पं.सुरेश नीरव
मो,९८१०२४३९६६

रविवार, 25 मई 2008

सपनों में आ के खो जा


छोड़ बाप का डनलप गद्दा इस खटिया पर सो जा
दाग गरीबी की चादर के आकर सारे धो जा
टूटा-सा जूता मेरा फटा हुआ है मौजा
फिर भी दिल दीवाना कहता बस ती मेरी हो जा
तू रखना उपवास प्रेम से रोजा में रख लूंगा
हूं मुंगेरी लाल मेरे सपनों में आ के खो जा
सरकारी नल-सी आंखों को आकर आज भिगो जा
मेरी टूटी ङुई सुई में धागा कोई पिरो जा
मन के इस सूखे गमले में इश्क की फसलें बो जा
ढूंढ ही लेगी तू भी मुझको जैसे मेंने खो जा
लावारिस उजड़ी मजार पर एक शाम तो रो जा
दूध समझकर तू मथनी से मेरा कफन बिलो जा
नागफनी-सी पलकें तेरी आंखें हैं चिलगोजा
नीरव के पथराए दिल में जो मन करे चुभो जा।

शुक्रवार, 23 मई 2008

गिफ्ट में यारों से प्यार लेते हैं।


हास्य गजल
मिले जहां से भी इनको उधार लेते हैं
मज़े में उम्र ये सारी गुजार लेते हैं
हमें तो समझा है मजदूर अफसरों ने सदा
सनक में आते ही हमको पुकार लेते हैं
न आयी गिनती कभी सैंकड़े के बाद इन्हें
अजीब बात है कसमें अक्सर हजार लेते हैं
कमाल के हैं खुले हैल्थ क्लब वतन में मेरे
जो पहलवानों की चमड़ी उतार लेते हैं
चबा के सूबे को नेताजी ब्रेकफास्ट करें
डिनर में पूरे वतन को डकार लेते हैं
अनावरण तो सुबह हँस के मूर्तियों का करें
परी की शाम को इज्जत उतार लेते हैं
प्रसाद भेजा जो भक्तों ने सूटकेसों में
उसी से पीढ़ियां सातों ये तार लेते हैं
पुजारी प्रेम के नीरव तमाम उम्र रहे
हमेशा गिफ्ट में यारों से प्यार लेते हैं।
पं. सुरेश नीरव

गुरुवार, 22 मई 2008

डाकू और कवि

संदर्भः चंबलघाटी कवि सम्मेलन
डाकू और कवि
चंबल के भयंकर डाकुओं ने
यानी स्टेनलेस स्टील के चाकुओं ने
कर दिया मुख्यमंत्री के आगे आत्मसमर्पण
यानी अपनी ही नस्ल के जंतु के आगे अपना तर्पण
प्रश्न ये उठा कि इन्हें क्या सजा दी जाए
किसी ने कहा-
इनसे चक्की चलवाई जाएं
किसी ने कहा-
इनसे भारी-भारी दरियां बुनवाई जाएं
तो हमने कहा-
भैया...
ये आत्समर्पित डाकू हैं
इसलिए न तो इनसे चक्कीयां चलवाई जाएगी
और न ही इनसे भारी-भारी दरियां बुनवाई जाएंगी
इन सब को सजाए बतौर
माइकपकड़ू कवियों की बोर कविताएं सुनवाई जांएगी
डाकू चिल्लाएंगे...
हमें मार डालो या फांसी के फंदे पर लटकाओ
मगर इन बोर कवियों की कविताओं से बचाओ।
पं. सुरेश नीरव
मों.९८१०२४३९६६

बुधवार, 21 मई 2008

ऐसा खयाल आया है मेरे खयाल में


हास्य ग़ज़ल
ऐसा खयाल आया है मेरे खयाल में
इक छेद कर रहा है वो घर की दिवाल में
अफसर मलेरिया का मरा इस मलाल में
मच्छर ने घर बनाया था क्यों उसके गाल में
है फर्क मुख्य मंत्री तथा राज्यपाल में
जैसे गधे की पूंछ और घोड़े के बाल में
थाने के नाम से थे हम बहुत डरे हुए
झट पहुंचे ले के अपनी रपट अस्पताल में
नर्सों ने हमको बेड पर ऐसे लिया दबोच
जीजा फंसे हों साली की जुल्फों के जाल में
घर डॉक्टर घुसेड़ के सूआ चला गया
और गुदगुदी-सी मच गई गैंडे की खाल में
नीरव के घर मिलेगा कहां शोर-शराबा
शबनम की बूंद ढूंढो न लकड़ी की टाल में।
पं. सुरेश नीरव
मो.-९८१०२४३९६६
(पिछली गजल के लिए रजनीश के. झा,मृगेन्र्द मकबूल, वरुण रॉय और बरगद से अमरबेल की तरह लिपटने की हसरत रखनेवाले डॉ. रूपेश श्रीवास्तव की जीवंत प्रतिक्रयाओं के लिए शुक्रियानुमा धन्यवादी थेंक्स...। )

हम भी देखेंगे

हास्य-गजल
चलो अंधे कुंए में आज उतरकर हम भी देखेंगे
अंधेरे आबनूसी हैं संवरकर हम भी देखेंगे
सुना है जादू बिकता है तेरी आंखों के प्लाजा में
तेरे जलवों की गलियों से गुजरकर हम भी देखेंगे
हुस्न की ब्रेड का मक्खन बड़े अंदाजवाला है
मिला जो चांस तबीयत से कुतरकर हम भी देखेंगे

सुना है शोख तितली ने थकाया सारे भंवरों को
कभी अमराई में उसको पकड़कर हम भी देखेंगे
जड़ें होती नहीं फिर भी हरे रहते हैं मनीप्लांट
जड़ों से इसलिए यारो उखड़कर हम भी देखेंगे।
पं. सुरेश नीरव
मों.९८१०२४३९६६

शुक्रवार, 16 मई 2008

कड़की में

हास्य-गजल
गाल कटोरा ताल हुए हैं कड़की में
पर्वत भी पाताल हुए हैं कड़की में
हम ठनठन गोपाल हुए हैं कड़की में
फटे हुए रूमाल हुए हैं कड़की में
आंखों में अपनी गर्दिश के आंसू
यार सूअर का बाल हुए हैं कड़की में
घोषित हुए प्रधान हमीं भिखमंगों के
कैसे हम खुशहाल हुए हैं कड़की में
हैं मखमली गलीचे लीडर के नीचे
लोग फटे तिरपाल हुए हैं कड़की में
खिचड़ी को मोहताज हुई खिचड़ी सरकार
कैसे विकट कमाल हुए हैं कड़की में
क्या खाकर उत्तर दें शव के प्रश्नों का
खुद विक्रम बैताल हुए हैं कड़की में
जमीं मुफ्त में फोकटखोरों की चौपाल
नीरव स्वयं सवाल हुए हैं कड़की में
पं. सुरेश नीरव
मो, ९८१०२४३९६६
(कु. अर्चना,नागपुर ने मोबाइल पर जहां अपनी प्रतिक्रिया दी वहीं भाई अनिल भारद्वाज, अरविंद पथिक,अबरार अहमद, रजनीश के.झा और अंकित माथुर ने भी अपनी बहुमूल्य टिप्पणी देकर अनुगृहीत किया है,डॉ.रूपेशजी शायद नर्सोन्मुखी-चिंतन में लीन-तल्लीन हैं वो हस्बमामूल लाम पर हैं,जहां भी हैं वतन के काम पर हैं।)

गुरुवार, 15 मई 2008

नित नहाने का शुरू जो सिलसिला हो जाएगा

हास्य-गजल
नित नहाने का शुरू जो सिलसिला हो जाएगा
देख लेना एक दिन तू पिलपिला हो जाएगा
धूल-धक्कड़ से सना जूतेनुमा चेहरा तेरा
भूल से भी धो लिया तो गिलगिला हो जाएगा
लेना मत पंगा कभी तू यार थानेदार से
एक मंजिल का बदन चौमंजिला हो जाएगा
इश्क का चक्कर तेरी बीवी को ना मालुम हो
वरना पंडित सिर तेरा खंडित किला हो जाएगा
घौंटकर रिश्वत के घोटालों में तू चारा मिला
बढ़के सर्किल तौंद का पूरा जिला हो जाएगा
पूछता है कॉलेजों में कौन अब टेलेंट को
फेंक डोनेशन फटाफट दाखिला हो जाएगा
भाषणों को मंत्रियों के तू समझ बस चुटकुले
चुटकियों में दूर तेरा हर गिला हो जाएगा
कर न लेना प्यारे नीरव नर्स से यारी कभी
वरना दुश्मन डॉक्टरों का काफिला हो जाएगा।
पं. सुरेश नीरव
मो.९८१०२४३९६६

मंगलवार, 13 मई 2008

लाल हो गया शहर गुलाबी, हाई अलर्ट हुआ खल्लास

जयपुर में हुए हादसे,लीडरों के बयान और क्रिकेटरों की बाजारू मुस्कान के मद्देनजर जो मुझे एहसास हुआ पेश है, मेरी रूह का ये बयान-
लाल हो गया शहर गुलाबी, हाई अलर्ट हुआ खल्लास
टहल रहा वहशी हूजी का अट्टहास लाशों के पास
रुका नहीं सर्कस क्रिकेट का चैनल की चौपाल पे यार
बेचकर इंसा अपना जज्बा सिर्फ रहा पैसों के पास
भागे हैं आतंकी भैंसे चर के जन-जीवन की घास
सुबक रहे हैं बैठे लीडर खूंटे और जंजीर के पास
मक्खी ऐसे भिनक रहीं हैं मंदिर की प्राचीर के पास
जैसे हों आतंकी जत्थे सीमा पर कश्मीर के पास
पिकनिक मना रहे हैं लीडर खबरों की खोली में यार
बैठा चुइंगम चबा रहा हूं मैं उनकी तस्वीर के पास।
पं. सुरेश नीरव
मो.-९८१०२४३९६६

खीसे में जिसके नामा है

खीसे में जिसके नामा है
आज वही बनता गामा है
हुनरमंद इस नये दौर में
फटा हुआ पाजामा है
खेल सियासत का देखो तो
कर्सी-कुर्सी हंगामा है
जाति धरम है असली चेहरा
देशभक्ति हंगामा है
देख के संसद बच्चा बोला
कितना वंडरफुल ड्रामा है
पावरफुल तो है बस चमचा
नेताजी बस खानसामा है
बुजदिल अशिक मेहबूबा के
बच्चों का बनता मामा है
मत पीना ऑफिस में पऊआ
बॉस का ये हुक्मनामा है
मत गिरना नीरवजी पीकर
गिरतों को किसने थामा है?
पं. सुरेश नीरव
मों.९८१०२४३९६६

रविवार, 11 मई 2008

दोस्त जीवन में प्यारे वही है सगा
वक्त पड़ते ही फौरन जो दे दे दगा
बाद सोने के तेरे रहे जो जगा
ऐसे महमां को जल्दी तू घर से भगा
भाग जाए न ले के वो कपड़े तेरे
झट से बंदर को जाकर तू छत से भगा
कच्ची इमली सड़क पर उछलने लगी
एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा
तेरी पॉकेट को काटा कोई गम नहीं
नंग वो हो गया तेरा रुतबा बढ़ा
तेरी चादर थी औरों से ज्यादा सफेद
इसलिए दाग दामन पे तेरे लगा
दोस्त के रूप में केंचुए ही मिले
सिंह साशि के नीरव तू तेवर दिखा।
पं. सुरेश नीरव
मों.९८१०२४३९६६

शनिवार, 10 मई 2008

काव्य-कुरकुरे

काव्य-कुरकुरे
कुरकुरी कविताएं
काव्य-काकटेल
कॉकटेल-कविता
कविता की पौं-पौं
पंडित का पोथा

वीणा के तारों को जितना दुलराया

वीणा के तारों को जितना दुलराया
उतनी ही रूठते गये
बाहर से मुस्काते दीख पड़े हम भीतर से टूटते गये
पारे-सा बिखर गया यादों का ताशमहल
दर्पण-सा टूट गया शबनमी अतीत
धूओं मे खो गई संदली हंसी
रूठ गये नयनों से सांवले प्रतीक
राह चले शान से हम तो बहुत
रास्ते खुद-ब-खुद छूटते गये
वीणा के तारों को जितना दुलराया
उतनी ही रूठते गये
ऐसे हैं बस्ती में आदमी यहां
जैसे हों जिंदा परछाइयां
कागज़ के फूल कभी खिलते नहीं
पानी और तेल कभी मिलते नहीं
वैसे तो दोस्तों के काफिले बहुत
राह चले काफिले छूटते गये
वीणा के तारों को जितना दुलराया
उतनी ही रूठते गये।
पं. सुरेश नीरव
मों ९८१०२४३९६६

गुरुवार, 8 मई 2008

खिलखिलाते ही रहे छंद तेरी आंखों के।

हंसते अनुप्रास मिले सांसों के वृंदावन में
खिलखिलाते ही रहे छंद तेरी आंखों के
शोक दामन में क्वांरी संध्या के
खिलखिलाते ही रहे बंद तेरी बातों के
रूप की धूप खिली देह के विंध्याचल में
गुनगुने जिस्म हुए गंधभरी पांखों के
मुक्तक-सा झरता निमिष-निमिष प्यार तेरा
छंद हुए और मुखर बातूनी रातों के
गुनगुनाती है हवा श्लोक तेरे गातों के
खिलखिलाते ही रहे छंद तेरी आंखों के
मेंहदी रचे पृष्ठों पर सोनाली हाथों के
हंसते हैं हस्ताक्षर प्यारभरी सांसों के
खिलखिलाते ही रहे छंद तेरी आंखों के।
खालीपन सन्नाटा संस्मरण प्यासों के
दहका गये चिंगारी जंगल में बांसों के
जैसे चंदन है जिये दंश लिए सांपों के
खिलखिलाते ही रहे छंद तेरी आंखों के।
पं. सुरेश नीरव
मों. ९८१०२४३९६६

मंगलवार, 6 मई 2008

पृथ्वी की पीड़ा

पृथ्वीपर्यावरण को समर्पित एक रचना-
पृथ्वी की पीड़ा
आज की तरक्की के रंग ये सुहाने हैं
डूबते जहाजों पर तैरते खजाने हैं
गलते हुए ग्लेशियर हैं सूखते मुहाने हैं
हांफती-सी नदियों के लापता ठिकाने हैं
टूटती ओजोन पर्तें रोज आसमानों में
धूंआ-धूंआ वादी में हंसते कारखाने हैं
कटते हुए जंगल के लापता परिंदों को
आंसुओं की सूरत में दर्द गुनगुनाने हैं
एटमी प्रदूषण के कातिलाना तेवर हैं
बहशी ग्लोबल वार्मिंग के सुनामी कारनामे हैं
आतिशों की बारिश है प्यास के तराने हैं
पांव बूढ़ी पृथ्वी के अब तो डगमगाने हैं।
पं. सुरेश नीरव

सोमवार, 5 मई 2008

पोटेशियम दिन हुए रात सोडियम

पोटेशियम दिन हुए रात सोडियम
देखो फिर भी गीत लिखते हैं हम
किरमिची सन्नाटे थर्राता तम
अणुधर्मी गर्मी में घुटता है दम
घायल है सुबह की नर्म-नर्म एड़ियां
डसती है धरती को युद्धों की बेड़ियां
बारूद सांसों में आज गया जम
देखो फिर भी गीत लिखते हैं हम
कारक है हिंसा युद्ध है करण
हारती है जिंदगी जीतता मरण
गांधी के सपनों की आंख हुई नम
देखो फिर भी गीत लिखते हैं हम
जाएं ना झुलस कहीं प्यार के नमन
कुंठित ना हो जाएं मंत्र और हवन
अट्टहास करता है बहशी-सा यम
देखो फिर भी गीत लिखते हैं हम।
पं. सुरेश नीरव
मों. ९८१०२४३९६६
हारती है जिंदगी जीतता मरण
गांधी के सपनों की आंख हुई नम

रविवार, 4 मई 2008

झुक गये नैन नीरव नमन की तरह।

( डॉ.रूपेश श्रीवास्तव, वरुण राय, रजनीश के.झा, और भाई अबरार अहमद आप-जैसे अदीबों की तारीफ और हौसलाअफजाही के लिए तहेदिल से शुक्रगुजार हूं.. पेश है आप हुनरमंदों के हुजूर में एक और ग़ज़ल..)
जिंदगी जब लगी इक चुभन की तरह
खिल गईं प्राण में तुम सुमन की तरह
सीपिया मन में ऐसी उठी भांवरें
कामना हो गई तब हवन की तरह
यूं तो कहने को जीवन तुम्हारा सही
भावना से सजाया भजन की तरह
खूब गहरा अंधेरा हुआ जब कभी
मिल गईं राह में तुम किरण की तरह
रोज़ चलते रहे हम यही सोचकर
तुम महकती तो होगी चमन की तरह
गुनगुनी याद फिर से पिघलने लगी
कल्पना कांपती बहुवचन की तरह
आ गया जिक्र बातों में जब आपका
झुक गये नैन नीरव नमन की तरह।
पं. सुरेश नीरव
मो. ९८१०२४३९६६

शुक्रवार, 2 मई 2008

लफ्ज के आईने में संवरता हूं मैं

दिल से जब भी तुझे याद करता हूं मैं
खुशबुओं के नगर से गुजरता हूं मैं
गुनगुनी सांस की रेशमी आंच में
धूप सुबह की होकर उतरता हूं मैं
नर्म एहसास का खुशनुमा अक्स बन
लफ्ज के आईने में संवरता हूं मैं
कांच के जिस्म पर बूंद पारे की बन
टूटता हूं बिखरकर सिहरता हूं मैं
चंपई होंठ की पंखुरी पर तिरे
ओस की बूंद बनकर उभरता हूं मैं
कहकहों की उमड़ती हुई भीड़ में
हो के नीरव हमेशा निखरता हूं मैं।
पं. सुरेश नीरव
मो.-९८१०२४३९६६

सब की आंखों में नीरव आप खल रहे होंगे।

धूप में परिंदों के पंख जल रहे होंगे
आंसुओं की सूरत में दर्द ढल रहे होंगे
तनहा-तनहा बस्ती में फूल-से खयालों के
नर्म-नर्म आहट पर पांव चल रहे होंगे
गर्म-गर्म सांसों के रेशमी अलावों में
मोम-से बदन तपकर आज गल रहे होंगे
चांद-जैसी लड़की के शर्बती-से नयनों में
ख्वाब कितने तारों के रात पल रहे होंगे
जुगनुओं की बस्ती में भोर ले के निकले हो
सब की आंखों में नीरव आप खल रहे होंगे।
पं. सुरेश नीरव
मो.९८१०२४३९६६

बुधवार, 30 अप्रैल 2008

श्लोक अधर मंत्र-सी आंखें देवालय-सा तन

श्लोक अधर मंत्र-सी आंखें देवालय-सा तन
रामायण-सा रूप तुम्हारा सांसें वृंदावन
मौलश्री की छांव के नीचे तुम ऐसी दिखती हो
भोजपत्र पर-जैसे कोई वेद-ऋचा लिख दी हो
जब से दरस तुम्हारा पाया हुआ तथागत मन
श्लोक अधर मंत्र-सी आंखें देवालय-सा तन
रामायण-सा रूप तुम्हारा सांसें वृंदावन
भेज दिया है गीत टांककर तुम्हें आज पाती में
अलगोजे की धुन गूंजे ज्यों चंदन की घाटी में
याद तुम्हारी महकी ऐसे ज्यों मंदिर में हवन
श्लोक अधर मंत्र-सी आंखें देवालय-सा तन
रामायण-सा रूप तुम्हारा सांसें वृंदावन
पं. सुरेश नीरव
मो.९८१०२४३९६६
(डा.रूपेशजी, रजनीश के.झा और वरुण राय का प्रतिक्रया हेतु आभार)

मंगलवार, 29 अप्रैल 2008

आप भी तो ऐ नीरव मनचले सपेरे हैं।

धूप की हथेली पर खुशबुओं के डेरे हैं
तितलियों के पंखों पर जागते सवेरे हैं
नर्म-नर्म लमहों की रेशमी-सी टहनी पर
गीत के परिंदों के खुशनुमा बसेरे हैं
फिर मचलती लहरों पर नाचती-सी किरणों ने
आज बूंद के घुंघरू दूर तक बिखेरे हैं
सच के झीने आंचल में झूठ यूं छिपा जैसे
रोशनी के झुरमुट में सांवले अंधेरे हैं
डूब के स्याही में जो लफ्ज-लफ्ज बनते हैं
मेरी गजलों में अब उन आंसुओं के पहरे हैं
उजले मन के चंदन का सर्प क्या बिगाड़ेंगे
आप भी तो ऐ नीरव मनचले सपेरे हैं।
पं. सुरेश नीरव
मो.९८१०२४३९६६

गुरुवार, 24 अप्रैल 2008

पं. सुरेश नीरव की एक चुलबुली गजल(सभी भड़ासियों से स्वासथ्य पर इसका बड़ा आयुर्वेदिक असर पड़ेगा)
किसी के हुस्न का जादू जगाने का इरादा हैसभी कुछ दांव पर अब तो लगाने का इरादा है
है मिसरी-सी जुवां तेरी,शहद टपके हैं बातों सेतुम आफत हो बड़ी कितनी बताने का इरादा है
सहमकर शाम को तनहा मिलोगी जब बगीचे मेंतुझे नाजुक शरारत से सताने का इरादा है
कभी फूलों की घाटी से,कभी पर्वत की चोटी सेतुझे दे-देकर आवाजें थकाने का इरादा है
मुहब्बत की शमा दिल में हुई रौशन न सदियों सेतेरे जलवों की तीली से जलाने का इरादा है
तुझें लहरों की कलकल में,तुझे फूलों की खुशबू मेंतुझे भंवरों की गुनगुन में बसाने का इरादा है
फटाफट तुम चली आओ,मेरी उजड़ी हवेली मेंतुझे टूटे खटोले पर सुलाने का इरादा है
ठिठुरकर शाम ने ओढ़ा है देखो शॉल कोहरे कातुझे जलते अलावों पर बुलाने का इरादा है
हँसी देखी है जोकर की, न देखे आंख के आंसूहजल से आज नीरव को हँसाने का इरादा है।

मंगलवार, 22 अप्रैल 2008

सागर मंथन...

क्षमादान भी कर सकते थे यदि सागर तुम पोखर होते
विष पी जाते चुचाप तुम में कभी नहीं लगाते गोते
पर ताकतवर से लड़जाना अपनी आदत अपना मन है
लहरो जागो देखो धाराओ हंसों जोर से पतवारो
अब मेरी क्षमताओं का संघर्षों द्वारा अभिनंदन होगासागर ने ललकारा है मुझको अब सागर मंथन होगा।
होकर सवार लहरों के रथ पर सागर भाग रहे हो
ऐसा अभिनय कर लेते हो जैसे जाग रहे हो
अरे इतना नहीं अकड़ते सागर खाली सीपी के बल पर
और कर्ज नहीं रखता हूं प्यारे आनेवाले कल पर
लो शंख बगावत करते हैं अब मर्यादा भंजन होगा
सागर ने ललकारा है मुझको अब सागर मंथन होगा।
भंवर पखारेगी पग मेरे हर नौका शीश झुकाएगी
जिन लहरों को छू दूंगा मैं जल पर कविता हो जाएगी
भले डूबना पड़ जाए सीने पर हस्ताक्षर कर दूंगा
आनेवाली सदियों तक हर लहर मुझे दोहराएगी
तब कवि की कविता का सचमुच पूजन-वंदन होगा
सागर ने ललकारा है मुझको अब सागर मंथन होगा।
पं. सुरेश नीरव मो.९८१०२४३९६६

सोमवार, 21 अप्रैल 2008

रोको मत पतवार मुझे तुम

रोको मत पतवार मुझे तुम
देखें कितनी ताकत है इन लहरोंवाले सागर में
रखते हैं अणुधर्मी ऊर्जा हम शब्दों की गागर में
नाव नहीं जो डूब जाऊंगा मुझको आंधी-सा बहने
रोको मत पतवार मुझे तुम मुझको सागर सहने दो
दुख की फुहार में भीगे पर छीजे नहीं कभी
सुख के डिस्को में भी नाचे पर रीझे नहीं कभी
नपी-तुली सुविधा के सपने डगर-मगर ढहने दो
रोको मत पतवार मुझे तुम मुझको सागर सहने दो
बहुत किया शोषण लहरों का अब सब लहरें बागी हैं
खारापन तुम रहे पिलाते अब सभी मछलियां जागी हैं
मौसम की मुद्रा में परिवर्तन है हार जाओगे रहने दो
रोको मत पतवार मुझे तुम मुझको सागर सहने दो
पं. सुरेश नीरव.
९८१०२४३९६६

गुरुवार, 17 अप्रैल 2008

टूट जाएगा वहम तुम्हारा

सांझ मत लड़ो उजाले से वर्ना टूट जाएगा वहम तुम्हारा
करने का दम रखते हैं तब तो स्वीकारा युग ने अहं हमारा
जिंदगीभर लड़े हम अंधेरों की झीलों से
क्योंकि उत्साह पुकारता है हमें बहुत दूर मीलों से
वादी ने जितना सुलगाया हम उतने सुर्ख हुए
तूफानो तरसो नहीं मिलेगा नमन हमारा
सांझ मत लड़ो उजाले से वर्ना टूट जाएगा वहम तुम्हारा
करने का दम रखते हैं तब तो स्वीकारा युग ने अहं हमारा
मौसम का रुख वे देखें जो दुबले हों
चऱण वंदना वे सीखें जो बगुले हों
हम विद्रोही मन लड़ते रहें स्वयं से स्वर नहीं बनेगा नरम हमारा
सांझ मत लड़ो उजाले से वर्ना टूट जाएगा वहम तुम्हारा
करने का दम रखते हैं तब तो स्वीकारा युग ने अहं हमारा
अरे हारें जो हालात से वो आदमी अधूरे हैं
हम भीतर और बाहर से आदम कद पूरे हैं
दृढता नियति रही मेरी हर मौसम मैं
तूफानो तरसो नहीं मिलेगा नमन हमारा
सांझ मत लड़ो उजाले से वर्ना टूट जाएगा वहम तुम्हारा
करने का दम रखते हैं तब तो स्वीकारा युग ने अहं हमारा
औसत इंसानों का मंजिल लक्षय रहा
हमने मंजिल त्यागीं राहों का साथ गहा
मंजिल हम राही लंबी राहों के बस चलते रहना धर्म हमारा
सांझ मत लड़ो उजाले से वर्ना टूट जाएगा वहम तुम्हारा
करने का दम रखते हैं तब तो स्वीकारा युग ने अहं हमारा।
पं. सुरेश नीरव
मो.९८१०२४३९६६

मंगलवार, 15 अप्रैल 2008

मौसम की मुद्रा में परिवर्तन है

भ्रष्ट राजनेताओं ने जिस तरह से देश को तबाह किया है,उसने एक बार फिर से पूरे देश को सोचने को मजबूर कर दिया है कि आखिर क्या इसी लिए देश को आजाद कराने के लिए हमारे शहीदों ने कुर्बानी दी थी?
१८५७ के स्वतंत्रता संग्राम में नानाजी पेशवा, महारानी लक्ष्मीबाई, नवाब बांदा,वीर कुंअर सिंह,बेगम हजरत महल,रानी जिंदा, राजा मर्दन सिंह, शाहजादा फिरोज और बहादुरशाह जफर के परिवार में कौन बचा है? जबकि उस दौर के वे राजा जिन्होंने कि अंग्रेजों का साथ दिया चाहे वह ग्वालियर के हों या कश्मीर के या पटियाला के.या नाभा के सब-के-सब आज भी राजनीति पर हावी हैं। तात्याटोपे के वंशजों को बड़ी धूम-धाम से लालूजी ने रेल्वे में अदना-सी नौकरी दे दी,रामप्रसाद बिसमिल की मां भीख मांगते हुए मरी,बहन चाय का ढाबा चलातीं रहीं.चंद्रशेखर आजाद की मां को भगवान दास माहौर ने ता-उम्र अपने यहां रखा। मैनपुरी षड्यंत्र के गैंदालाल दीक्षित दिल्ली के सरकारी अस्पताल में एक लावारिस की तरह मर गये। सुखदेव,राजगुरु या बटकेश्वर दत्त के परिवार का कोई सदस्य नहीं बचा। लोक मान्य तिलक, लाला लाजपत राय,लाला हरदयाल,श्यामजी कृष्ण वर्मा,मदन लाल ढींगरा,ऊधम सिंह वीर सावरकर किसके परिवार का सदस्य आज देश की राजनीति में है? शहीदे आजम भगत सिंह के पिता और दो चाचा स्वतंत्ता संग्रामी थे,कौन है उनके परिवार का जो राजनीति में है? आजादी के बाद जो अंग्रेजों के मुखबिर थे, अंग्रेजों के पिट्ठू थे वे महात्मा गांधी की जय कहते ह्ए सत्ता पर काविज होते चले गये। देशनायक सुभाष चंद्र बोस को वो जिंदा हैं या नहीं इस पहेली में उलझाकर कभी न खत्म होनेवाला रहस्य बना दिया। कुल मिलाकर देश के अमर शहीदों का इस व्यवस्था ने कभी सम्मान नहीं किया। उनको,उनके नाम को अपने हित में मनचाहा यूज किया और कर रहे हैं। हर राजनीतिक दल अपनी संतान को तख्ते-ताउस पर बैठानेवाली एक एजेंसी बनकर रह गई है। जाति,धर्म,क्षेत्रियता ने हालत यह कर डाली है कि महाराष्ट्र में अब उत्तर भारतीय का रहना मुहाल किया जा रहा है।प्रगति के तमाम आंकड़ों के बावजूद किसान आत्म हत्याएं कर रहे हैं,मंहगाई से हारकर लोग खुदकुशी कर रहे हैं। इन सब हालातों में देश का युवावर्ग जागा है। इसका प्रमाण है अभी हाल में लोकप्रियता के सर्वेक्षण के नतीजे जिसमें हिंदुस्तान की जनता ने अपने आदर्श के रूप में शहीदे आजम भगत सिंह को सबसे ज्यादा मत देकर अपना निर्णय सुना दिया है। दूसरे नंबर पर उन्होंने नेताजी सुभाष को रखा है। गांधीजी और नेहरूजी तो काफी पीछे हैं। क्या देश का यह मोहभंग का फैसला है? अगर हां तो मैं देश के आज के राजनेताओं से यही कहूंगा कि जरा सोचिए...कल तेरा क्या होगा कालिया? जो वक्त की आवाज नहीं सुनते वे इतिहास के कचरेदान में फेंक दिये जाते हैं। याफि इतिहास के सलीब पर लटकाए जाते हैं। मौसम की मुद्रा में परिवर्तन है,उसकी आहट को सुनने का शऊर अपने आप में पैदा करो कुर्सी के खटमलो...।
पं. सुरेश नीरव

भाई मयंक श्रीवास्तव

भाई मयंक श्रीवास्तव
जिस देश की पीढ़ी अपने शहीदों को भूल जाती है, उस देश की आजादी बहुत दिनों तक बरकरार नहीं रह पाती है। आपने बैसाखी के जरिए शहीद ऊधम सिंह का पुण्य स्मरण कराया, उसके लिए हम सभी भड़ासी आपके हृदय से कृतज्ञ हैं। जिन्होंने अपनी जान की बाजी लगाकर हमें आजादी दिलाई है,उनका स्मरण न करने से बड़ा जघन्य अपराध और कुछ हो ही नहीं सकता। मैं इस संदर्भ में निवेदन करना चाहूंगा कि मैं स्वयं शहीदों के लिए अपनी क्षमताभर कुछ-न-कुछ करता रहता हूं। काकोरी के शहीद पं. राम प्रसाद बिसमिल पर मैंने सरफरोशी की तमन्ना टेली फिल्म बनाई है और राष्टीय प्रसारण के लिए १८५७ के अमर शहीदों पर २५ रूपक लिख चुका हूं।आजकल पं. राम प्रसाद बिसमिल फाउंडेशन का अध्यक्ष हूं। आप मेरे आत्मीय अभिवादन स्वीकारें।
पं. सुरेश नीरव
९८१०२४३९६६

रविवार, 13 अप्रैल 2008

आधुनिका

कैसे कह दूं कि तुम
एक अगर्भित पराग कण हो
तुम्हारी देह का कुंआरा ईथर
वासना के क्लोरोफार्म से
बहिरंतर दहक रहा है
और तुम्हारी आखों के कच्चे हरेपन में
मादकता का अल्कोहल महक रहा है
अरे तुम तो हो एक चुंबकीय गुड़िया
जिस के चरित्र का गुरुत्व केंद्र
दौलत के रडार के इशारे पर
झूमता है,कसमसाता है
तुम्हें देखकर मेरे मन का यूरेनियम पिघलता है
सच तुम पर बड़ा तरस आता है
सोचता हूं कि तथाकथित आधुनिकता का
पतन से कितना गहरा नाता है?
पं. सुरेश नीरव
मो.९८१०२४३९६६