बुधवार, 9 जुलाई 2008

खुदा खैर करे


इश्क में हम हैं गिरफ्तार खुदा खैर करे
डैडी उनके हैं हवलदार खुदा खैर करे
इतनी गरमी पड़ी इस बार खुदा खैर करे
मेढ़की तक पड़ी बीमार खुदा खैर करे
काम होता नहीं आजकल दफ्तर में कहीं
हो गये दिन सभी रविवार खुदा खैर करे
ढ़ूंढने आदमी निकला था जमाने में वफा
वक्त खुद हो गया गद्दार खुदा खैर करे
मेंहरबा मीडिया कुबड़ों पे हुआ है ऐसा
बौनी लगने लगी मीनार खुदा खैर करे
देखते-देखते इस दौर के मेकअप का कमाल
हुस्न लगने लगा खूंखार खुदा खैर करे
शेखचिल्ली न मिला एक भी नीरव-सा यहां
इश्क में खो दिया घर-बार खुदा खैर करे।
पं.सुरेश नीरव

दीवाने हजारों हैं


हास्य-गजल-
इक पिद्दी-सी लड़की के दीवाने हजारों हैं
है उम्र फक़त सोलह अफसाने हजारों हैं
रिश्वत पे यहां कोई सरचार्ज नहीं लगता
हम जैसों की इनकम पर जुर्माने हजारों हैं
ढूंढे से नहीं मिलता नमकीन यहां अच्छा
बस्ती में मगर अपनी मयखाने हजारों हैं
आंसू की नुमाइश तो आंखों में लगी देखी
हंसने की खताओं पर हर्जाने हजारों हैं
बीवी को सजावट का सामान नहीं मिलता
मेकअप के खुले घर-घर बुतखाने हजारों हैं
कल ही तो शपथ लेकर सालेजी बने मंत्री
अब केस दरोगा पर चलवाने हजारों हैं
इंपोर्ट विदेशों से करना है हमें गोबर
गोबर की जगह नेता तुलवाने हजारों हैं
मुद्दत से खड़े नीरव बस्ती में यहां तन्हा
अपना ना मिला कोई बेगाने हजारों हैं।
पं. सुरेश नीरव

मंगलवार, 1 जुलाई 2008

दांतों का सेट मुंह से बाहर गिरा निकल के

हास्य-ग़ज़ल-
औंधे गिरे डगर में छिलके से वो फिसल के
दांतों का सेट मुंह से बाहर गिरा निकल के
शायर निकल के आया पतली गली ले चल के
इस हादसे पे पेले कुछ शेर यूं गजल के
गड्ढे भरी है सड़कें चिकना बहुत है रस्ता
है उम्र भी फिसलनी चला ज़रा संभल के
पैदल हो अक्ल से तुम और आंख से भी अंधे
क्या तीर मार लोगे इंसानियत पे चल के
हालात हैं निराले मेरे नगर के यारो
पानी तो है नदारद बिल आ रहे हैं नल के
फिर इस चुनाव में भी डूबी है इनकी लुटिया
आया ना रास कोई दल देखे सब बदल के
वो और हैं जिन्होंने गिरवी रखा कलम को
नीरव बने न भौंपू अब तक किसी भी दल के।
पं. सुरेश नीरव