गुरुवार, 24 अप्रैल 2008

पं. सुरेश नीरव की एक चुलबुली गजल(सभी भड़ासियों से स्वासथ्य पर इसका बड़ा आयुर्वेदिक असर पड़ेगा)
किसी के हुस्न का जादू जगाने का इरादा हैसभी कुछ दांव पर अब तो लगाने का इरादा है
है मिसरी-सी जुवां तेरी,शहद टपके हैं बातों सेतुम आफत हो बड़ी कितनी बताने का इरादा है
सहमकर शाम को तनहा मिलोगी जब बगीचे मेंतुझे नाजुक शरारत से सताने का इरादा है
कभी फूलों की घाटी से,कभी पर्वत की चोटी सेतुझे दे-देकर आवाजें थकाने का इरादा है
मुहब्बत की शमा दिल में हुई रौशन न सदियों सेतेरे जलवों की तीली से जलाने का इरादा है
तुझें लहरों की कलकल में,तुझे फूलों की खुशबू मेंतुझे भंवरों की गुनगुन में बसाने का इरादा है
फटाफट तुम चली आओ,मेरी उजड़ी हवेली मेंतुझे टूटे खटोले पर सुलाने का इरादा है
ठिठुरकर शाम ने ओढ़ा है देखो शॉल कोहरे कातुझे जलते अलावों पर बुलाने का इरादा है
हँसी देखी है जोकर की, न देखे आंख के आंसूहजल से आज नीरव को हँसाने का इरादा है।

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