सोमवार, 9 मार्च 2015

अल्फाज़ के चेहरों पर ख़यालों की तपन



अखिलभारतीय
सर्वभाषा संस्कृति समन्वय समिति-
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प्रवीण चौहान एक तेजस्वी पत्रकार हैं। और प्रतिष्ठित पत्रिका "समकालीन चौथी दुनिया" के संपादक हैं। मेरे व्यक्तित्व के एक गोपनीय पहलू को उन्होंने बेनक़ाब किया है। अब मैं क्या करूं? आप ही कुछ मदद करें।
-सुरेश नीरव
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अल्फाज़ के चेहरों पर ख़यालों की तपन
-प्रवीण चौहान
समकालीन हिंदी सृजन-संसार में पंडित सुरेश नीरव एक जाना-पहचाना नाम है। पंडित सुरेश नीरव के चाहनेवालों की फेहरिश्त कितनी लंबी है इसका एहसास किसी भी सोशल साइट पर जाने मात्र से हो जाता है। जो भी बटन दबाएंगे पंडितजी को आप वहीं पाएंगे। ऐसा पंडितजी में क्या ख़ास है? यह तो केवल वही बता सकता है जो कभी उनके नज़दीक पहुंचा हो। आत्मीयता,सहृदयता और संवेदनशीलता तो उनके विरासती गुण है हीं इसके साथ-ही-साथ पेशेगत पत्रकारिता,साहित्य सेवा और फिल्म-टीवी और कविसम्मेलनीय सक्रियता ने उन्हें राष्ट्रीय स्तर के कवि के ओहदे पर पहुंचा दिया है। वे जितनी रुचि के साथ पढ़े जाते हैं उतने ही आग्रह के साथ प्रबुद्ध श्रोताओं द्वारा सुने भी जाते हैं। हर चर्चित व्यक्ति के कुछ आलोचक भी होते हैं और इस मामले में नीरवजी भी अछूते नहीं है। मगर असलियत हमेशा नजदीक जाने पर ही सामने आती है। उनके साथ बिताए समय के दौरान मेरे भी कई संस्मरण रहे हैं। चाहे एटा का पत्रकार सम्मेलन,कवि सम्मेलन या फिर बद्रीनाथ मैं आयोजित सर्वभाषा संस्कृति समन्वय समिति का दो-दिनी राष्ट्रीय सहित्योत्सव। लेकिन एक संस्मरण आज तक न सिर्फ़ मेरे बल्कि समूचे समकालीन चौथी दुनिया परिवार और उसके प्रबुद्ध पाठक वर्ग के मानस-पटल पर अंकित है और जो रह-रहकर उनकी बहुमुखी प्रतिभा का एहसास कराता है। बहुत कम ही लोग जानते हैं कि पंडित सुरेश नीरवजी का जितना दखल रचनाधर्मिता के क्षेत्र में हैं उससे कहीं ज्यादा पकड़ उनकी ज्योतिष के क्षेत्र में भी है। वाकया 2001 का है। मेरी पंडितजी से तब तक अधिक परिचय नहीं था। एक दिन “कादम्बिनी” कार्यालय में उनके पास बैठकर अपनी पत्रिका की बेहतरी के लिए उनसे उपयोगी सुझाव ले रहा था तो उन्होंने पत्रिका में एक कॉलम ज्योतिष और राशिफल का जोड़ने का सुझाव इस वायदे के साथ दिया कि जब तक कोई और ज्योतिषी नहीं मिल जाता वे ख़ुद इस कॉलम को लिखेंगे। अगले ही माह नए साल के उपलक्ष्य में पत्रिका में सोलह पेज का “ज्योतिष सप्लीमेंट” देने का हमारे संपादकीय परिवार ने निर्णय ले लिया और इस उत्तरदायित्व को निभाने का जिम्मा भी पंडित सुरेश नीरवजी पर ही छोड़ दिया गया। जब उन्हें इस निर्णय से अवगत कराया गया तो उन्होंने यह जिम्मेदारी सहर्ष स्वीकार कर ली। शुरू में मैंने इस बात को ब़ड़े हल्क-फुल्के ढंग से ही लिया। सोचा एक साहित्यकार की ज्योतिष के क्षेत्र में क्या पकड़ होगी? मगर सोचा कि चलो एक बार छापकर देख लेते हैं। मगर अंक जैसे ही बाज़ार में आया तो हमारे तो होश ही उड़ गए। न सिर्फ़ हज़ारों पाठकों की ओर से भविष्यफल को सराहना मिली बल्कि उस भविष्यफल के बाद आज तक हमारे पाठकों की ओर से फरमाइशभरी शिकायत आती है कि आप पंडित सुरेश नीरवजी के द्वारा किया गया भविष्यफल अब क्यों नहीं छापते हैं? पाठकों की प्रतिक्रिया का अनुमान आप हमारे समकालीन चौथी दुनिया के संपादकीय परिवार के सदस्यों पर राशिफल के हुए प्रभाव से बड़ी आसानी से लगा सकते हैं। मुझे पहली बार राशिफल की सत्यता का एहसास इसी “सप्लीमेंट” से हुआ। जिसमें भविष्यवाणी की गई थी कि घर में किलकारी गूंजने का प्रबल योग है। और उस सुखदपल की प्रतीक्षा बड़ी बेकरारी के साथ हमें पिछले आठ सालों से थी। जो सही सिद्ध हुई। हमारे समाचार संपादक अश्विनि कुमार के लिए सूद के साथ परिवार बढोत्तरी की भविष्यवाणी भी पंडितजी ने की थी। और सचमुच उनके जुड़वा बच्चे ही हुए। हमारे एक संवाददाता कई साल से धारा 302 का मुकदमा झेल रहे थे। उनके लिए भविष्यवाणी की गई थी कि इसी साल के नवंबर माह में वे कोर्ट-कचहरी के जंजाल से मुक्ति पा जाएंगे और यही हुआ। व्यापार,नौकरी,शादी,विवाह,चुनाव,स्वास्थ्य और संतान सुख सभी मामलों पर पंडितजी द्वारा की गई भविष्वाणियां जितनी सटीक और सही साबित हुईं ऐसी भविष्यवाणियां आज तक मैंने अपने जीवन में किसी और ज्योषाचार्य की नहीं देखीं। यही वजह है कि हमारी समकालीन चौथी दुनिया का पूरा परिवार पंडितजी का आज तक मुरीद है।
अब जब पंडित सुरेश नीरव के व्यक्तित्व एवं कृतित्व का समग्र मूल्यांकन करते हुए संदर्भग्रंथ का प्रकाशन होने जा रहा है तो यह ज़रूरी हो जाता है कि नीरवजी के व्यक्तित्व के इस अनुदघाटित आयाम से भी जनमानस को अवगत कराया जाए। और प्रसंगवश इस तथ्य की भी ईमानदारी से पड़ताल की जाए कि ब्रहमांड के नक्षत्र हमारे जीवन पर कितना प्रभाव डालते हैं? वैसे हमारे ग्रंथ तो यही कहते हैं कि यत् पिंडे तत् ब्रहमांडे। यानी हमारे शरीर की संरचना देह पर लिखी नक्षत्रों की ही इबारत है। बस इस भाषा को पढ़ने का हुनर आना चाहिए। और ये हुनर दैवयोग से पंडित सुरेश को प्राप्त है। जिसकी जानकारी कम ही लोगों को है। पत्रकार का कार्य तथ्यों को सामने लाना होता है। एक पत्रकार होने के नाते उस तथ्य को जो सत्य भी है सार्वजनिक करते हुए मुझे प्रसन्नता है। और संतोष भी। और अंत में पंडित सुरेश नीरव से उनके ही एक शेर के मार्फ़त यह गुजारिश भी कि-
“देखी अल्फाज़ के चेहरों पर ख़यालों की तपन
इन पे नगमों के सितारों का तू साया कर दे।“
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Praveen Chauhan के साथ

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