शुक्रवार, 30 मई 2008

सुधरने के लिए

हास्य-गजल
शहर को भागा है गीदड़ आज मरने के लिए
लोमड़ी ने भर दिया उसको सुधरने के लिए
चूहा लाया है कुतर के सुंदरी की साड़ियां
मूड में चुहिया खड़ी सजने-संवरने के लिए
जोतकर खेतों को अपने तू खुशी से फूल जा
बैठे है तैयार नेता फस्ल चरने के लिए
जितने ठसके से दिए जाते हैं आये दिन बयान
उतने ही माहिर हैं सब उनसे मुकरने के लिए
कल मिनिस्टरजी ने फोड़ा पुल पे जा के नारियल
चोट काफी थी यही पुल को बिखरने के लिए
गिफ्ट में निकला टिकिट कश्मीर से इराक का
ये सबब काफी नहीं क्या मेरे डरने के लिए
एक कुर्सी तक कहां नीरव को हो पायी नसीब
उनको सिंहासन मिला खुलकर पसरने के लिए।
पं. सुरेश नीरव
मो.९८१०२४३९६६

हम भी फ्लाप तुम भी फ्लाप

हास्य-गजल
हम भी फ्लाप तुम भी फ्लाप
तिकड़म में पर दोनों टॉप
मिलकर खेलें कविता-कविता
मैं बच्चन तो दिनकर आप
उसे बना देंगे आलोचक
जो हो जनम से झोलाछाप
अपनों को काटेंगे झट से
आस्तीन के हम हैं सांप
मक्खनबाजी के मंत्रों का
सुबह-शाम करते हैं जाप
माल पचा लेना औरों का
नहीं मानते बिल्कुल पाप
हुनर हमारा सिर्फ झटकना
सम्मानों के लॉलीपॉप
हम भी फ्लाप तुम भी फ्लाप
तिकड़म में पर दोनों टॉप।
पं. सुरेश नीरव
मो.-९८१०२४३९६६

बुधवार, 28 मई 2008

लीडर को आम जलसे में गैंडे की खाल दी


हास्य गजल
जालिम ने देस्ती की वो बढिया मिसाल दी
खटिया भी अपनी कल मेरे आंगन में डाल दी
इक हादसे में कट गई कल जेब यार की
लेकर तलाशी रूह हमारी खंगाल दी
दिखलाया धूमधाम से पब्लिक ने आईना
लीडर को आम जलसे में गैंडे की खाल दी
महबूब को ये सोचा था कुल्फी खिलाएंगे
कुल्फी के रेट ने तो हवा ही निकाल दी
मिलती नहीं है क्रीम मुझे मेरे ब्रांड की
झुंझलाके उसने कल पे मुलाकात टाल दी
कमजोर दिल के लोग भी हैं इश्क के मरीज
फिर क्यों खुदा ने हुस्न को ये मस्त चाल दी
ये कहके सब उतार दो कर्जा विदेश का
मंत्री पे एक बच्चे ने गुल्लक उछाल दी
पीकर कई मरे पढ़ी नीरव ने जब खबर
अपनी बची शराब मुझे उसने ढाल दी।
पं. सुरेश नीरव
मो.९८१०२४३९६६

सोमवार, 26 मई 2008


दोस्तों के लिए...

ये न पूछो कि किस-किस ने धोखे दिये
वरना अपनों के चेहरे उतर जाएंगे।


०००दोस्त् जीवन में प्यारे वही है सगा
मौका पड़ते ही झट से जो दे दे दगा
तेरी चादर थी औरों से ज्यादा सफेद
इसलिए दाग दामन पे तेरे लगा।
०००
उम्र गुजरी है आजमाने में
कोई अपना नहीं जमाने में
दोस्त मुश्किल से एक-दो होंगे
इतने बैठे हैं शामियाने में
परख दोस्तों की होती है तभी
टांग अपनी फंसी हो थाने में
पहले आते तो मदद कर देते
टाल दी बात यूं बहाने में
फ्राड-ही-फ्राड दूर तक फैले
खोटे सिक्के हैं बस खजाने में।
पं.सुरेश नीरव
मो,९८१०२४३९६६

रविवार, 25 मई 2008

सपनों में आ के खो जा


छोड़ बाप का डनलप गद्दा इस खटिया पर सो जा
दाग गरीबी की चादर के आकर सारे धो जा
टूटा-सा जूता मेरा फटा हुआ है मौजा
फिर भी दिल दीवाना कहता बस ती मेरी हो जा
तू रखना उपवास प्रेम से रोजा में रख लूंगा
हूं मुंगेरी लाल मेरे सपनों में आ के खो जा
सरकारी नल-सी आंखों को आकर आज भिगो जा
मेरी टूटी ङुई सुई में धागा कोई पिरो जा
मन के इस सूखे गमले में इश्क की फसलें बो जा
ढूंढ ही लेगी तू भी मुझको जैसे मेंने खो जा
लावारिस उजड़ी मजार पर एक शाम तो रो जा
दूध समझकर तू मथनी से मेरा कफन बिलो जा
नागफनी-सी पलकें तेरी आंखें हैं चिलगोजा
नीरव के पथराए दिल में जो मन करे चुभो जा।

शुक्रवार, 23 मई 2008

गिफ्ट में यारों से प्यार लेते हैं।


हास्य गजल
मिले जहां से भी इनको उधार लेते हैं
मज़े में उम्र ये सारी गुजार लेते हैं
हमें तो समझा है मजदूर अफसरों ने सदा
सनक में आते ही हमको पुकार लेते हैं
न आयी गिनती कभी सैंकड़े के बाद इन्हें
अजीब बात है कसमें अक्सर हजार लेते हैं
कमाल के हैं खुले हैल्थ क्लब वतन में मेरे
जो पहलवानों की चमड़ी उतार लेते हैं
चबा के सूबे को नेताजी ब्रेकफास्ट करें
डिनर में पूरे वतन को डकार लेते हैं
अनावरण तो सुबह हँस के मूर्तियों का करें
परी की शाम को इज्जत उतार लेते हैं
प्रसाद भेजा जो भक्तों ने सूटकेसों में
उसी से पीढ़ियां सातों ये तार लेते हैं
पुजारी प्रेम के नीरव तमाम उम्र रहे
हमेशा गिफ्ट में यारों से प्यार लेते हैं।
पं. सुरेश नीरव

गुरुवार, 22 मई 2008

डाकू और कवि

संदर्भः चंबलघाटी कवि सम्मेलन
डाकू और कवि
चंबल के भयंकर डाकुओं ने
यानी स्टेनलेस स्टील के चाकुओं ने
कर दिया मुख्यमंत्री के आगे आत्मसमर्पण
यानी अपनी ही नस्ल के जंतु के आगे अपना तर्पण
प्रश्न ये उठा कि इन्हें क्या सजा दी जाए
किसी ने कहा-
इनसे चक्की चलवाई जाएं
किसी ने कहा-
इनसे भारी-भारी दरियां बुनवाई जाएं
तो हमने कहा-
भैया...
ये आत्समर्पित डाकू हैं
इसलिए न तो इनसे चक्कीयां चलवाई जाएगी
और न ही इनसे भारी-भारी दरियां बुनवाई जाएंगी
इन सब को सजाए बतौर
माइकपकड़ू कवियों की बोर कविताएं सुनवाई जांएगी
डाकू चिल्लाएंगे...
हमें मार डालो या फांसी के फंदे पर लटकाओ
मगर इन बोर कवियों की कविताओं से बचाओ।
पं. सुरेश नीरव
मों.९८१०२४३९६६

बुधवार, 21 मई 2008

ऐसा खयाल आया है मेरे खयाल में


हास्य ग़ज़ल
ऐसा खयाल आया है मेरे खयाल में
इक छेद कर रहा है वो घर की दिवाल में
अफसर मलेरिया का मरा इस मलाल में
मच्छर ने घर बनाया था क्यों उसके गाल में
है फर्क मुख्य मंत्री तथा राज्यपाल में
जैसे गधे की पूंछ और घोड़े के बाल में
थाने के नाम से थे हम बहुत डरे हुए
झट पहुंचे ले के अपनी रपट अस्पताल में
नर्सों ने हमको बेड पर ऐसे लिया दबोच
जीजा फंसे हों साली की जुल्फों के जाल में
घर डॉक्टर घुसेड़ के सूआ चला गया
और गुदगुदी-सी मच गई गैंडे की खाल में
नीरव के घर मिलेगा कहां शोर-शराबा
शबनम की बूंद ढूंढो न लकड़ी की टाल में।
पं. सुरेश नीरव
मो.-९८१०२४३९६६
(पिछली गजल के लिए रजनीश के. झा,मृगेन्र्द मकबूल, वरुण रॉय और बरगद से अमरबेल की तरह लिपटने की हसरत रखनेवाले डॉ. रूपेश श्रीवास्तव की जीवंत प्रतिक्रयाओं के लिए शुक्रियानुमा धन्यवादी थेंक्स...। )

हम भी देखेंगे

हास्य-गजल
चलो अंधे कुंए में आज उतरकर हम भी देखेंगे
अंधेरे आबनूसी हैं संवरकर हम भी देखेंगे
सुना है जादू बिकता है तेरी आंखों के प्लाजा में
तेरे जलवों की गलियों से गुजरकर हम भी देखेंगे
हुस्न की ब्रेड का मक्खन बड़े अंदाजवाला है
मिला जो चांस तबीयत से कुतरकर हम भी देखेंगे

सुना है शोख तितली ने थकाया सारे भंवरों को
कभी अमराई में उसको पकड़कर हम भी देखेंगे
जड़ें होती नहीं फिर भी हरे रहते हैं मनीप्लांट
जड़ों से इसलिए यारो उखड़कर हम भी देखेंगे।
पं. सुरेश नीरव
मों.९८१०२४३९६६

शुक्रवार, 16 मई 2008

कड़की में

हास्य-गजल
गाल कटोरा ताल हुए हैं कड़की में
पर्वत भी पाताल हुए हैं कड़की में
हम ठनठन गोपाल हुए हैं कड़की में
फटे हुए रूमाल हुए हैं कड़की में
आंखों में अपनी गर्दिश के आंसू
यार सूअर का बाल हुए हैं कड़की में
घोषित हुए प्रधान हमीं भिखमंगों के
कैसे हम खुशहाल हुए हैं कड़की में
हैं मखमली गलीचे लीडर के नीचे
लोग फटे तिरपाल हुए हैं कड़की में
खिचड़ी को मोहताज हुई खिचड़ी सरकार
कैसे विकट कमाल हुए हैं कड़की में
क्या खाकर उत्तर दें शव के प्रश्नों का
खुद विक्रम बैताल हुए हैं कड़की में
जमीं मुफ्त में फोकटखोरों की चौपाल
नीरव स्वयं सवाल हुए हैं कड़की में
पं. सुरेश नीरव
मो, ९८१०२४३९६६
(कु. अर्चना,नागपुर ने मोबाइल पर जहां अपनी प्रतिक्रिया दी वहीं भाई अनिल भारद्वाज, अरविंद पथिक,अबरार अहमद, रजनीश के.झा और अंकित माथुर ने भी अपनी बहुमूल्य टिप्पणी देकर अनुगृहीत किया है,डॉ.रूपेशजी शायद नर्सोन्मुखी-चिंतन में लीन-तल्लीन हैं वो हस्बमामूल लाम पर हैं,जहां भी हैं वतन के काम पर हैं।)

गुरुवार, 15 मई 2008

नित नहाने का शुरू जो सिलसिला हो जाएगा

हास्य-गजल
नित नहाने का शुरू जो सिलसिला हो जाएगा
देख लेना एक दिन तू पिलपिला हो जाएगा
धूल-धक्कड़ से सना जूतेनुमा चेहरा तेरा
भूल से भी धो लिया तो गिलगिला हो जाएगा
लेना मत पंगा कभी तू यार थानेदार से
एक मंजिल का बदन चौमंजिला हो जाएगा
इश्क का चक्कर तेरी बीवी को ना मालुम हो
वरना पंडित सिर तेरा खंडित किला हो जाएगा
घौंटकर रिश्वत के घोटालों में तू चारा मिला
बढ़के सर्किल तौंद का पूरा जिला हो जाएगा
पूछता है कॉलेजों में कौन अब टेलेंट को
फेंक डोनेशन फटाफट दाखिला हो जाएगा
भाषणों को मंत्रियों के तू समझ बस चुटकुले
चुटकियों में दूर तेरा हर गिला हो जाएगा
कर न लेना प्यारे नीरव नर्स से यारी कभी
वरना दुश्मन डॉक्टरों का काफिला हो जाएगा।
पं. सुरेश नीरव
मो.९८१०२४३९६६

मंगलवार, 13 मई 2008

लाल हो गया शहर गुलाबी, हाई अलर्ट हुआ खल्लास

जयपुर में हुए हादसे,लीडरों के बयान और क्रिकेटरों की बाजारू मुस्कान के मद्देनजर जो मुझे एहसास हुआ पेश है, मेरी रूह का ये बयान-
लाल हो गया शहर गुलाबी, हाई अलर्ट हुआ खल्लास
टहल रहा वहशी हूजी का अट्टहास लाशों के पास
रुका नहीं सर्कस क्रिकेट का चैनल की चौपाल पे यार
बेचकर इंसा अपना जज्बा सिर्फ रहा पैसों के पास
भागे हैं आतंकी भैंसे चर के जन-जीवन की घास
सुबक रहे हैं बैठे लीडर खूंटे और जंजीर के पास
मक्खी ऐसे भिनक रहीं हैं मंदिर की प्राचीर के पास
जैसे हों आतंकी जत्थे सीमा पर कश्मीर के पास
पिकनिक मना रहे हैं लीडर खबरों की खोली में यार
बैठा चुइंगम चबा रहा हूं मैं उनकी तस्वीर के पास।
पं. सुरेश नीरव
मो.-९८१०२४३९६६

खीसे में जिसके नामा है

खीसे में जिसके नामा है
आज वही बनता गामा है
हुनरमंद इस नये दौर में
फटा हुआ पाजामा है
खेल सियासत का देखो तो
कर्सी-कुर्सी हंगामा है
जाति धरम है असली चेहरा
देशभक्ति हंगामा है
देख के संसद बच्चा बोला
कितना वंडरफुल ड्रामा है
पावरफुल तो है बस चमचा
नेताजी बस खानसामा है
बुजदिल अशिक मेहबूबा के
बच्चों का बनता मामा है
मत पीना ऑफिस में पऊआ
बॉस का ये हुक्मनामा है
मत गिरना नीरवजी पीकर
गिरतों को किसने थामा है?
पं. सुरेश नीरव
मों.९८१०२४३९६६

रविवार, 11 मई 2008

दोस्त जीवन में प्यारे वही है सगा
वक्त पड़ते ही फौरन जो दे दे दगा
बाद सोने के तेरे रहे जो जगा
ऐसे महमां को जल्दी तू घर से भगा
भाग जाए न ले के वो कपड़े तेरे
झट से बंदर को जाकर तू छत से भगा
कच्ची इमली सड़क पर उछलने लगी
एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा
तेरी पॉकेट को काटा कोई गम नहीं
नंग वो हो गया तेरा रुतबा बढ़ा
तेरी चादर थी औरों से ज्यादा सफेद
इसलिए दाग दामन पे तेरे लगा
दोस्त के रूप में केंचुए ही मिले
सिंह साशि के नीरव तू तेवर दिखा।
पं. सुरेश नीरव
मों.९८१०२४३९६६

शनिवार, 10 मई 2008

काव्य-कुरकुरे

काव्य-कुरकुरे
कुरकुरी कविताएं
काव्य-काकटेल
कॉकटेल-कविता
कविता की पौं-पौं
पंडित का पोथा

वीणा के तारों को जितना दुलराया

वीणा के तारों को जितना दुलराया
उतनी ही रूठते गये
बाहर से मुस्काते दीख पड़े हम भीतर से टूटते गये
पारे-सा बिखर गया यादों का ताशमहल
दर्पण-सा टूट गया शबनमी अतीत
धूओं मे खो गई संदली हंसी
रूठ गये नयनों से सांवले प्रतीक
राह चले शान से हम तो बहुत
रास्ते खुद-ब-खुद छूटते गये
वीणा के तारों को जितना दुलराया
उतनी ही रूठते गये
ऐसे हैं बस्ती में आदमी यहां
जैसे हों जिंदा परछाइयां
कागज़ के फूल कभी खिलते नहीं
पानी और तेल कभी मिलते नहीं
वैसे तो दोस्तों के काफिले बहुत
राह चले काफिले छूटते गये
वीणा के तारों को जितना दुलराया
उतनी ही रूठते गये।
पं. सुरेश नीरव
मों ९८१०२४३९६६

गुरुवार, 8 मई 2008

खिलखिलाते ही रहे छंद तेरी आंखों के।

हंसते अनुप्रास मिले सांसों के वृंदावन में
खिलखिलाते ही रहे छंद तेरी आंखों के
शोक दामन में क्वांरी संध्या के
खिलखिलाते ही रहे बंद तेरी बातों के
रूप की धूप खिली देह के विंध्याचल में
गुनगुने जिस्म हुए गंधभरी पांखों के
मुक्तक-सा झरता निमिष-निमिष प्यार तेरा
छंद हुए और मुखर बातूनी रातों के
गुनगुनाती है हवा श्लोक तेरे गातों के
खिलखिलाते ही रहे छंद तेरी आंखों के
मेंहदी रचे पृष्ठों पर सोनाली हाथों के
हंसते हैं हस्ताक्षर प्यारभरी सांसों के
खिलखिलाते ही रहे छंद तेरी आंखों के।
खालीपन सन्नाटा संस्मरण प्यासों के
दहका गये चिंगारी जंगल में बांसों के
जैसे चंदन है जिये दंश लिए सांपों के
खिलखिलाते ही रहे छंद तेरी आंखों के।
पं. सुरेश नीरव
मों. ९८१०२४३९६६

मंगलवार, 6 मई 2008

पृथ्वी की पीड़ा

पृथ्वीपर्यावरण को समर्पित एक रचना-
पृथ्वी की पीड़ा
आज की तरक्की के रंग ये सुहाने हैं
डूबते जहाजों पर तैरते खजाने हैं
गलते हुए ग्लेशियर हैं सूखते मुहाने हैं
हांफती-सी नदियों के लापता ठिकाने हैं
टूटती ओजोन पर्तें रोज आसमानों में
धूंआ-धूंआ वादी में हंसते कारखाने हैं
कटते हुए जंगल के लापता परिंदों को
आंसुओं की सूरत में दर्द गुनगुनाने हैं
एटमी प्रदूषण के कातिलाना तेवर हैं
बहशी ग्लोबल वार्मिंग के सुनामी कारनामे हैं
आतिशों की बारिश है प्यास के तराने हैं
पांव बूढ़ी पृथ्वी के अब तो डगमगाने हैं।
पं. सुरेश नीरव

सोमवार, 5 मई 2008

पोटेशियम दिन हुए रात सोडियम

पोटेशियम दिन हुए रात सोडियम
देखो फिर भी गीत लिखते हैं हम
किरमिची सन्नाटे थर्राता तम
अणुधर्मी गर्मी में घुटता है दम
घायल है सुबह की नर्म-नर्म एड़ियां
डसती है धरती को युद्धों की बेड़ियां
बारूद सांसों में आज गया जम
देखो फिर भी गीत लिखते हैं हम
कारक है हिंसा युद्ध है करण
हारती है जिंदगी जीतता मरण
गांधी के सपनों की आंख हुई नम
देखो फिर भी गीत लिखते हैं हम
जाएं ना झुलस कहीं प्यार के नमन
कुंठित ना हो जाएं मंत्र और हवन
अट्टहास करता है बहशी-सा यम
देखो फिर भी गीत लिखते हैं हम।
पं. सुरेश नीरव
मों. ९८१०२४३९६६
हारती है जिंदगी जीतता मरण
गांधी के सपनों की आंख हुई नम

रविवार, 4 मई 2008

झुक गये नैन नीरव नमन की तरह।

( डॉ.रूपेश श्रीवास्तव, वरुण राय, रजनीश के.झा, और भाई अबरार अहमद आप-जैसे अदीबों की तारीफ और हौसलाअफजाही के लिए तहेदिल से शुक्रगुजार हूं.. पेश है आप हुनरमंदों के हुजूर में एक और ग़ज़ल..)
जिंदगी जब लगी इक चुभन की तरह
खिल गईं प्राण में तुम सुमन की तरह
सीपिया मन में ऐसी उठी भांवरें
कामना हो गई तब हवन की तरह
यूं तो कहने को जीवन तुम्हारा सही
भावना से सजाया भजन की तरह
खूब गहरा अंधेरा हुआ जब कभी
मिल गईं राह में तुम किरण की तरह
रोज़ चलते रहे हम यही सोचकर
तुम महकती तो होगी चमन की तरह
गुनगुनी याद फिर से पिघलने लगी
कल्पना कांपती बहुवचन की तरह
आ गया जिक्र बातों में जब आपका
झुक गये नैन नीरव नमन की तरह।
पं. सुरेश नीरव
मो. ९८१०२४३९६६

शुक्रवार, 2 मई 2008

लफ्ज के आईने में संवरता हूं मैं

दिल से जब भी तुझे याद करता हूं मैं
खुशबुओं के नगर से गुजरता हूं मैं
गुनगुनी सांस की रेशमी आंच में
धूप सुबह की होकर उतरता हूं मैं
नर्म एहसास का खुशनुमा अक्स बन
लफ्ज के आईने में संवरता हूं मैं
कांच के जिस्म पर बूंद पारे की बन
टूटता हूं बिखरकर सिहरता हूं मैं
चंपई होंठ की पंखुरी पर तिरे
ओस की बूंद बनकर उभरता हूं मैं
कहकहों की उमड़ती हुई भीड़ में
हो के नीरव हमेशा निखरता हूं मैं।
पं. सुरेश नीरव
मो.-९८१०२४३९६६

सब की आंखों में नीरव आप खल रहे होंगे।

धूप में परिंदों के पंख जल रहे होंगे
आंसुओं की सूरत में दर्द ढल रहे होंगे
तनहा-तनहा बस्ती में फूल-से खयालों के
नर्म-नर्म आहट पर पांव चल रहे होंगे
गर्म-गर्म सांसों के रेशमी अलावों में
मोम-से बदन तपकर आज गल रहे होंगे
चांद-जैसी लड़की के शर्बती-से नयनों में
ख्वाब कितने तारों के रात पल रहे होंगे
जुगनुओं की बस्ती में भोर ले के निकले हो
सब की आंखों में नीरव आप खल रहे होंगे।
पं. सुरेश नीरव
मो.९८१०२४३९६६