बुधवार, 30 अप्रैल 2008

श्लोक अधर मंत्र-सी आंखें देवालय-सा तन

श्लोक अधर मंत्र-सी आंखें देवालय-सा तन
रामायण-सा रूप तुम्हारा सांसें वृंदावन
मौलश्री की छांव के नीचे तुम ऐसी दिखती हो
भोजपत्र पर-जैसे कोई वेद-ऋचा लिख दी हो
जब से दरस तुम्हारा पाया हुआ तथागत मन
श्लोक अधर मंत्र-सी आंखें देवालय-सा तन
रामायण-सा रूप तुम्हारा सांसें वृंदावन
भेज दिया है गीत टांककर तुम्हें आज पाती में
अलगोजे की धुन गूंजे ज्यों चंदन की घाटी में
याद तुम्हारी महकी ऐसे ज्यों मंदिर में हवन
श्लोक अधर मंत्र-सी आंखें देवालय-सा तन
रामायण-सा रूप तुम्हारा सांसें वृंदावन
पं. सुरेश नीरव
मो.९८१०२४३९६६
(डा.रूपेशजी, रजनीश के.झा और वरुण राय का प्रतिक्रया हेतु आभार)

मंगलवार, 29 अप्रैल 2008

आप भी तो ऐ नीरव मनचले सपेरे हैं।

धूप की हथेली पर खुशबुओं के डेरे हैं
तितलियों के पंखों पर जागते सवेरे हैं
नर्म-नर्म लमहों की रेशमी-सी टहनी पर
गीत के परिंदों के खुशनुमा बसेरे हैं
फिर मचलती लहरों पर नाचती-सी किरणों ने
आज बूंद के घुंघरू दूर तक बिखेरे हैं
सच के झीने आंचल में झूठ यूं छिपा जैसे
रोशनी के झुरमुट में सांवले अंधेरे हैं
डूब के स्याही में जो लफ्ज-लफ्ज बनते हैं
मेरी गजलों में अब उन आंसुओं के पहरे हैं
उजले मन के चंदन का सर्प क्या बिगाड़ेंगे
आप भी तो ऐ नीरव मनचले सपेरे हैं।
पं. सुरेश नीरव
मो.९८१०२४३९६६

गुरुवार, 24 अप्रैल 2008

पं. सुरेश नीरव की एक चुलबुली गजल(सभी भड़ासियों से स्वासथ्य पर इसका बड़ा आयुर्वेदिक असर पड़ेगा)
किसी के हुस्न का जादू जगाने का इरादा हैसभी कुछ दांव पर अब तो लगाने का इरादा है
है मिसरी-सी जुवां तेरी,शहद टपके हैं बातों सेतुम आफत हो बड़ी कितनी बताने का इरादा है
सहमकर शाम को तनहा मिलोगी जब बगीचे मेंतुझे नाजुक शरारत से सताने का इरादा है
कभी फूलों की घाटी से,कभी पर्वत की चोटी सेतुझे दे-देकर आवाजें थकाने का इरादा है
मुहब्बत की शमा दिल में हुई रौशन न सदियों सेतेरे जलवों की तीली से जलाने का इरादा है
तुझें लहरों की कलकल में,तुझे फूलों की खुशबू मेंतुझे भंवरों की गुनगुन में बसाने का इरादा है
फटाफट तुम चली आओ,मेरी उजड़ी हवेली मेंतुझे टूटे खटोले पर सुलाने का इरादा है
ठिठुरकर शाम ने ओढ़ा है देखो शॉल कोहरे कातुझे जलते अलावों पर बुलाने का इरादा है
हँसी देखी है जोकर की, न देखे आंख के आंसूहजल से आज नीरव को हँसाने का इरादा है।

मंगलवार, 22 अप्रैल 2008

सागर मंथन...

क्षमादान भी कर सकते थे यदि सागर तुम पोखर होते
विष पी जाते चुचाप तुम में कभी नहीं लगाते गोते
पर ताकतवर से लड़जाना अपनी आदत अपना मन है
लहरो जागो देखो धाराओ हंसों जोर से पतवारो
अब मेरी क्षमताओं का संघर्षों द्वारा अभिनंदन होगासागर ने ललकारा है मुझको अब सागर मंथन होगा।
होकर सवार लहरों के रथ पर सागर भाग रहे हो
ऐसा अभिनय कर लेते हो जैसे जाग रहे हो
अरे इतना नहीं अकड़ते सागर खाली सीपी के बल पर
और कर्ज नहीं रखता हूं प्यारे आनेवाले कल पर
लो शंख बगावत करते हैं अब मर्यादा भंजन होगा
सागर ने ललकारा है मुझको अब सागर मंथन होगा।
भंवर पखारेगी पग मेरे हर नौका शीश झुकाएगी
जिन लहरों को छू दूंगा मैं जल पर कविता हो जाएगी
भले डूबना पड़ जाए सीने पर हस्ताक्षर कर दूंगा
आनेवाली सदियों तक हर लहर मुझे दोहराएगी
तब कवि की कविता का सचमुच पूजन-वंदन होगा
सागर ने ललकारा है मुझको अब सागर मंथन होगा।
पं. सुरेश नीरव मो.९८१०२४३९६६

सोमवार, 21 अप्रैल 2008

रोको मत पतवार मुझे तुम

रोको मत पतवार मुझे तुम
देखें कितनी ताकत है इन लहरोंवाले सागर में
रखते हैं अणुधर्मी ऊर्जा हम शब्दों की गागर में
नाव नहीं जो डूब जाऊंगा मुझको आंधी-सा बहने
रोको मत पतवार मुझे तुम मुझको सागर सहने दो
दुख की फुहार में भीगे पर छीजे नहीं कभी
सुख के डिस्को में भी नाचे पर रीझे नहीं कभी
नपी-तुली सुविधा के सपने डगर-मगर ढहने दो
रोको मत पतवार मुझे तुम मुझको सागर सहने दो
बहुत किया शोषण लहरों का अब सब लहरें बागी हैं
खारापन तुम रहे पिलाते अब सभी मछलियां जागी हैं
मौसम की मुद्रा में परिवर्तन है हार जाओगे रहने दो
रोको मत पतवार मुझे तुम मुझको सागर सहने दो
पं. सुरेश नीरव.
९८१०२४३९६६

गुरुवार, 17 अप्रैल 2008

टूट जाएगा वहम तुम्हारा

सांझ मत लड़ो उजाले से वर्ना टूट जाएगा वहम तुम्हारा
करने का दम रखते हैं तब तो स्वीकारा युग ने अहं हमारा
जिंदगीभर लड़े हम अंधेरों की झीलों से
क्योंकि उत्साह पुकारता है हमें बहुत दूर मीलों से
वादी ने जितना सुलगाया हम उतने सुर्ख हुए
तूफानो तरसो नहीं मिलेगा नमन हमारा
सांझ मत लड़ो उजाले से वर्ना टूट जाएगा वहम तुम्हारा
करने का दम रखते हैं तब तो स्वीकारा युग ने अहं हमारा
मौसम का रुख वे देखें जो दुबले हों
चऱण वंदना वे सीखें जो बगुले हों
हम विद्रोही मन लड़ते रहें स्वयं से स्वर नहीं बनेगा नरम हमारा
सांझ मत लड़ो उजाले से वर्ना टूट जाएगा वहम तुम्हारा
करने का दम रखते हैं तब तो स्वीकारा युग ने अहं हमारा
अरे हारें जो हालात से वो आदमी अधूरे हैं
हम भीतर और बाहर से आदम कद पूरे हैं
दृढता नियति रही मेरी हर मौसम मैं
तूफानो तरसो नहीं मिलेगा नमन हमारा
सांझ मत लड़ो उजाले से वर्ना टूट जाएगा वहम तुम्हारा
करने का दम रखते हैं तब तो स्वीकारा युग ने अहं हमारा
औसत इंसानों का मंजिल लक्षय रहा
हमने मंजिल त्यागीं राहों का साथ गहा
मंजिल हम राही लंबी राहों के बस चलते रहना धर्म हमारा
सांझ मत लड़ो उजाले से वर्ना टूट जाएगा वहम तुम्हारा
करने का दम रखते हैं तब तो स्वीकारा युग ने अहं हमारा।
पं. सुरेश नीरव
मो.९८१०२४३९६६

मंगलवार, 15 अप्रैल 2008

मौसम की मुद्रा में परिवर्तन है

भ्रष्ट राजनेताओं ने जिस तरह से देश को तबाह किया है,उसने एक बार फिर से पूरे देश को सोचने को मजबूर कर दिया है कि आखिर क्या इसी लिए देश को आजाद कराने के लिए हमारे शहीदों ने कुर्बानी दी थी?
१८५७ के स्वतंत्रता संग्राम में नानाजी पेशवा, महारानी लक्ष्मीबाई, नवाब बांदा,वीर कुंअर सिंह,बेगम हजरत महल,रानी जिंदा, राजा मर्दन सिंह, शाहजादा फिरोज और बहादुरशाह जफर के परिवार में कौन बचा है? जबकि उस दौर के वे राजा जिन्होंने कि अंग्रेजों का साथ दिया चाहे वह ग्वालियर के हों या कश्मीर के या पटियाला के.या नाभा के सब-के-सब आज भी राजनीति पर हावी हैं। तात्याटोपे के वंशजों को बड़ी धूम-धाम से लालूजी ने रेल्वे में अदना-सी नौकरी दे दी,रामप्रसाद बिसमिल की मां भीख मांगते हुए मरी,बहन चाय का ढाबा चलातीं रहीं.चंद्रशेखर आजाद की मां को भगवान दास माहौर ने ता-उम्र अपने यहां रखा। मैनपुरी षड्यंत्र के गैंदालाल दीक्षित दिल्ली के सरकारी अस्पताल में एक लावारिस की तरह मर गये। सुखदेव,राजगुरु या बटकेश्वर दत्त के परिवार का कोई सदस्य नहीं बचा। लोक मान्य तिलक, लाला लाजपत राय,लाला हरदयाल,श्यामजी कृष्ण वर्मा,मदन लाल ढींगरा,ऊधम सिंह वीर सावरकर किसके परिवार का सदस्य आज देश की राजनीति में है? शहीदे आजम भगत सिंह के पिता और दो चाचा स्वतंत्ता संग्रामी थे,कौन है उनके परिवार का जो राजनीति में है? आजादी के बाद जो अंग्रेजों के मुखबिर थे, अंग्रेजों के पिट्ठू थे वे महात्मा गांधी की जय कहते ह्ए सत्ता पर काविज होते चले गये। देशनायक सुभाष चंद्र बोस को वो जिंदा हैं या नहीं इस पहेली में उलझाकर कभी न खत्म होनेवाला रहस्य बना दिया। कुल मिलाकर देश के अमर शहीदों का इस व्यवस्था ने कभी सम्मान नहीं किया। उनको,उनके नाम को अपने हित में मनचाहा यूज किया और कर रहे हैं। हर राजनीतिक दल अपनी संतान को तख्ते-ताउस पर बैठानेवाली एक एजेंसी बनकर रह गई है। जाति,धर्म,क्षेत्रियता ने हालत यह कर डाली है कि महाराष्ट्र में अब उत्तर भारतीय का रहना मुहाल किया जा रहा है।प्रगति के तमाम आंकड़ों के बावजूद किसान आत्म हत्याएं कर रहे हैं,मंहगाई से हारकर लोग खुदकुशी कर रहे हैं। इन सब हालातों में देश का युवावर्ग जागा है। इसका प्रमाण है अभी हाल में लोकप्रियता के सर्वेक्षण के नतीजे जिसमें हिंदुस्तान की जनता ने अपने आदर्श के रूप में शहीदे आजम भगत सिंह को सबसे ज्यादा मत देकर अपना निर्णय सुना दिया है। दूसरे नंबर पर उन्होंने नेताजी सुभाष को रखा है। गांधीजी और नेहरूजी तो काफी पीछे हैं। क्या देश का यह मोहभंग का फैसला है? अगर हां तो मैं देश के आज के राजनेताओं से यही कहूंगा कि जरा सोचिए...कल तेरा क्या होगा कालिया? जो वक्त की आवाज नहीं सुनते वे इतिहास के कचरेदान में फेंक दिये जाते हैं। याफि इतिहास के सलीब पर लटकाए जाते हैं। मौसम की मुद्रा में परिवर्तन है,उसकी आहट को सुनने का शऊर अपने आप में पैदा करो कुर्सी के खटमलो...।
पं. सुरेश नीरव

भाई मयंक श्रीवास्तव

भाई मयंक श्रीवास्तव
जिस देश की पीढ़ी अपने शहीदों को भूल जाती है, उस देश की आजादी बहुत दिनों तक बरकरार नहीं रह पाती है। आपने बैसाखी के जरिए शहीद ऊधम सिंह का पुण्य स्मरण कराया, उसके लिए हम सभी भड़ासी आपके हृदय से कृतज्ञ हैं। जिन्होंने अपनी जान की बाजी लगाकर हमें आजादी दिलाई है,उनका स्मरण न करने से बड़ा जघन्य अपराध और कुछ हो ही नहीं सकता। मैं इस संदर्भ में निवेदन करना चाहूंगा कि मैं स्वयं शहीदों के लिए अपनी क्षमताभर कुछ-न-कुछ करता रहता हूं। काकोरी के शहीद पं. राम प्रसाद बिसमिल पर मैंने सरफरोशी की तमन्ना टेली फिल्म बनाई है और राष्टीय प्रसारण के लिए १८५७ के अमर शहीदों पर २५ रूपक लिख चुका हूं।आजकल पं. राम प्रसाद बिसमिल फाउंडेशन का अध्यक्ष हूं। आप मेरे आत्मीय अभिवादन स्वीकारें।
पं. सुरेश नीरव
९८१०२४३९६६

रविवार, 13 अप्रैल 2008

आधुनिका

कैसे कह दूं कि तुम
एक अगर्भित पराग कण हो
तुम्हारी देह का कुंआरा ईथर
वासना के क्लोरोफार्म से
बहिरंतर दहक रहा है
और तुम्हारी आखों के कच्चे हरेपन में
मादकता का अल्कोहल महक रहा है
अरे तुम तो हो एक चुंबकीय गुड़िया
जिस के चरित्र का गुरुत्व केंद्र
दौलत के रडार के इशारे पर
झूमता है,कसमसाता है
तुम्हें देखकर मेरे मन का यूरेनियम पिघलता है
सच तुम पर बड़ा तरस आता है
सोचता हूं कि तथाकथित आधुनिकता का
पतन से कितना गहरा नाता है?
पं. सुरेश नीरव
मो.९८१०२४३९६६