शुक्रवार, 2 मई 2008

सब की आंखों में नीरव आप खल रहे होंगे।

धूप में परिंदों के पंख जल रहे होंगे
आंसुओं की सूरत में दर्द ढल रहे होंगे
तनहा-तनहा बस्ती में फूल-से खयालों के
नर्म-नर्म आहट पर पांव चल रहे होंगे
गर्म-गर्म सांसों के रेशमी अलावों में
मोम-से बदन तपकर आज गल रहे होंगे
चांद-जैसी लड़की के शर्बती-से नयनों में
ख्वाब कितने तारों के रात पल रहे होंगे
जुगनुओं की बस्ती में भोर ले के निकले हो
सब की आंखों में नीरव आप खल रहे होंगे।
पं. सुरेश नीरव
मो.९८१०२४३९६६

कोई टिप्पणी नहीं: