शुक्रवार, 6 जून 2008

हम कहां जाएं


हास्य-गजल
छुपे हैं चोर थाने में पकड़ने हम कहां जाएं
दरोगा बन गया साला अकड़ने हम कहां जाएं
पलस्तर चढ़ गया पक्का हमारे दोनों हाथों में
टंकी है नाक पर मक्खी रगड़ने हम कहां जाएं
लगा है शौक पढ़ने का हमें यारो बुढ़ापे में
बंधी भैंसें मदरसे में तो पढ़ने हम कहां जाएं
खुजाकर सिर किया गंजा ना आई बात भेजे में
लिया है जन्म अगड़ों में पिछड़ने हम कहां जाएं
ना बिजली है ना पानी है ना सीबर है ना सड़के हैं
बसाया घर है यू.पी में उजड़ने हम कहां जाएं
कटे हैं सीरियल में दिन गुजारी रात फिल्मों में
जो नीरव घर में हो टी.वी. बिगड़ने हम कहां जाएं
पं. सुरेश नीरव
मो.९८१०२४३९६६

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