सोमवार, 16 जून 2008

निगाहों को बड़ा दिलकश नजारा मिल गया होता

cकिसी अंधे को लाठी का सहारा मिल गया होता
अगर उस दिन तेरा छत से इशारा मिल गया होता
न लेकर बैंड तुम आते न बजता मेरी शादी में
न कश्ती डूबती मेरी किनारा मिल गया होता
न भरते कान डैडी के तुम्हारे घर छुपे दुश्मन
जन्मपत्री में दोंनों का सितारा मिल गया होता
जुटाकर ईंट रोड़ों को बना लेते नया कुनबा
अगर भानुमती का पिटारा मिल गया होता
बगल में महिला कॉलेज के जो अपना घर बना होता
निगाहों को बड़ा दिलकश नजारा मिल गया होता
सहर होते ही मंदिर में जो जाती तू भजन करने
तेरे भजनों के सुर -में- सुर हमारा मिल गया होता
छुड़ाकर पिंड कविता से बड़ा अच्छा किया नीरव
नहीं तो मंच पर नीरव दुबारा मिल गया होता।
पं. सुरेश नीरव
मो.९८१०२४३९६६



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