सोमवार, 23 जून 2008

दो कते

खुले में कहीं वो नहाने लगेंगे
बदन पर जे साबुन लगाने लगेंगे
कसम से खुदा की मैं कहता हूं यारो
तो गूंगे भी कोरस में गाने लगेंगे
००००
जो बूढ़े भी नजरें लड़ाने लगेंगे
वो मंजर भी कितने सुहाने लगेंगे
किया इश्क का न बुढ़ापे में लफड़ा
तो बच्चों को डैडी जनाने लगेंगे।
पं. सुरेश नीरव
मो.-९८१०२४३९६६

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