रविवार, 29 जून 2008

गुस्सा गधे को आ गया

बात उल्लू ने कही गुस्सा गधे को आ गया
प्यार कहते हैं किसे है कौन से जादू का नाम
आंख करती है इशारे दिल का हो जाता है काम
बारहवें बच्चे से अपनी तेरहवीं करवा गया
बात उल्लू ने कही गुस्सा गधे को आ गया
गुस्ल करवाने को कांधे पर लिए जाते हैं लोग
ऐसे बूढे शेख को भी पांचवी शादी का योग
जाते-जाते एक अंधा मौलवी बतला गया
बात उल्लू ने कही गुस्सा गधे को आ गया
जबसे बस्ती में हमारे एक थाना है खुला
घूमता हर जेबकतरा दूध का होकर धुला
चोर थानेदार को फिर आईना दिखला गया
बात उल्लू ने कही गुस्सा गधे को आ गया
चांद पूनम का मुझे कल घर के पिछवाड़े मिला
मन के गुलदस्ते में मेरे फूल गूलर का खिला
ख्वाब टूटा जिस घड़ी दिन में अंधेरा छा गया
बात उल्लू ने कही गुस्सा गधे को आ गया।
पं. सुरेश नीरव

मंगलवार, 24 जून 2008

सुरां न पीबति सः असुरः।

सुरा की महत्ता को लेकर मन हुआ कि सुरा के समर्थन में कुछ तथ्य मैं भी प्रस्तुत कर दूं। यथा- महर्षि कश्यप की दो पत्नियां थीं- दीति और अदीति। दीति के पुत्र दैत्य तथा अदीति के पुत्र देवता कहलाए। असुरों ने सुरा न पीने का संकल्प लिया मगर सुरों ने उस प्रतिबंध को नहीं माना क्योंकि उनके पिता महर्षि कश्यप को इससे परहेज नहीं था। संस्कृत में कश्य का अर्थ ही शराब होता है। (कश्यःशराब,अपःपीनेवाला।) जिस जगह बैठकर देवता शराब का उत्कर्षण करते थे यानी आसव का उत्कर्षण (उत-सव) करते थे, वह क्रिया ही उत्सव कहलाई। मंड की बनी शराब, जिस स्थान पर देवता पीते थे, वह जगह ही मंडप कहलाई। और पीनेवालों का समूह मंडली कहलाया। शराब को सुरा भी कहा जाता है और ठीक वैसे ही जैसे मद्य को पीनेवाला मद्यप कहलाता है वैसे ही सुरा को पीनेवेले को सुर और न पीनेवाले को असुर कहा गया। सामवेद में तो यह तक कह दिया गया कि- सुरां न पीबति सः असुरः। हिंदू धर्म में गाय का मांस वर्जित है, शराब नहीं। इस्लाम में शराब पर प्रतिबंध है मांसाहार पर नहीं और ईसाइयत में न शराब पर प्रतिबंध है और न ही मांसाहार पर। फारसी में स का उच्चारण ह होता है जैसे सप्ताह को हफ्ता कहा जाता है। वैसे ही असुर को अहुर कहा जाता है। अहुर राज्य असीरिया से अफगान और ईरान तक फैला था और नासिरयाल यहां का बादशाद था जो अपने को अहुर कहता था। अहुरमत्जा के महत्व को सभी जानते हैं। सुरा,सीता,प्रसन्ना,मधु, कादंबरी, आसव वारुणी, सौ से अधिक शब्द शराब के लिए संस्कृत साहित्य में उपलब्ध हैं जो इस बात को प्रतीक हैं कि सुरों के समुदाय में सुरा का प्रचलन कितना था ? सुरा का ईश ही सुरेश कहलाता है जो तीस से अधिक सरक (पैग ) लगाकर ही सुर में आता है। सोमपान ही सामवेद में साम है और बिना साम के सामंजस्य कहां ? इसलिए है देवपुत्रो समस्त देवी-देवताओं के पावन स्मरण के साथ आप पतितपावनी वारुणी का प्रतिदिन पवित्र भाव से आचमण करें और अपने देवत्व में श्रीवृद्धि करें। ओम वारुणाय नमः।
पं. सुरेश नीरव

सोमवार, 23 जून 2008

दो कते

खुले में कहीं वो नहाने लगेंगे
बदन पर जे साबुन लगाने लगेंगे
कसम से खुदा की मैं कहता हूं यारो
तो गूंगे भी कोरस में गाने लगेंगे
००००
जो बूढ़े भी नजरें लड़ाने लगेंगे
वो मंजर भी कितने सुहाने लगेंगे
किया इश्क का न बुढ़ापे में लफड़ा
तो बच्चों को डैडी जनाने लगेंगे।
पं. सुरेश नीरव
मो.-९८१०२४३९६६

खुद चूने का पान हुए संयोजकजी

हास्य-ग़ज़ल
कवियों में मलखान हुए संयोजकजी
रसिकों के रसखान हुए संयोजकजी
इतनी तंबाकू-कत्थे से की यारी
खुद चूने का पान हुए संयोजकजी
चुनचुनकर सब फ्लाप कवि, एक टीम रची
खुद उसके कप्तान हुए संयोजकजी
मंचखोर तुक्कड़ कवियों के टापू में
मनचाहे वरदान हुए संयोजकजी
भरते सुबहो-शाम जिन्हें मिलकर चमचे
ऐसे कच्चे कान हुए संयोजकजी
मरियल कवि को मिला लिफाफा मोटा-सा
मंद-मंद मुस्कान हुए संयोजकजी
पाल-पोसकर बड़े किये चेले-चांटे
गुरगों के भगवान हुए संयोजकजी
पशुमेला क्या लालकिला तक चर डाला
भैया बड़े महान हुए संयोजकजी
फसल बचाएं मठाधीश की चिड़ियों से
देखो स्वयं मचान हुए संयोजकजी
नीरव से मुठभेड़ हुई जब करगिल में
पिटकर पाकिस्तान हुए संयोजकजी।
पं. सुरेश नीरव
मो.९८१०२४३९६६





बुधवार, 18 जून 2008

कर्ज में डूबे हैं फिर भी शान बाकी है


जम के चोरी कीजिए दूकान बाकी है
छोड़िए कटपीस पूरा थान बाकी है
बह गई कश्ती अभी तूफान में
कर्ज में डूबे हैं फिर भी शान बाकी है
रुक न पाएगी कभी फरमाइशें उनकी
जब तलक मेरे बदन में जान बाकी है
वैसे तो चलती है कैंची-सी जुबां उनकी
चुप रहेंगे मुंह में जब तक पान बाकी है
लिख दिए मिसरे ग़ज़ल के उनके होंठों पर
उस फसाने का मगर उन्वान बाकी है
है फरिश्तों से भी ऊंचा आज वो इनसान
जिसमें थोड़-सा अभी ईमान बाकी है
इस कदर जज्बात को निगला मशीनों ने
यंत्र-सा चलता हुआ इनसान बाकी है
कान में नीरव के बोला बेहया लीडर
लूटने को पूरा हिंदुस्तान बाकी है।
पं. सुरेश नीरव
मो.-९८१०२४३९६६

मंगलवार, 17 जून 2008

तो खफा हो बैठे।

हास्य-ग़ज़ल
उनकी कुर्सी को हिलाया तो खफा हो उठे
पिंड मुश्किल से छुड़ाया तो खफा हो बैठे
शेर जिनके वो सुनाते थे बताकर अपने
अस्ल शायर से मिलाया तो खफा हो बैठे
दिल के नुस्खों के बड़े चर्चे सुने थे हमने
चीरकर दिल जो दिखाया तो खफा हो बैठे
चाय हर रोज बनाकर पिलाते थे उन्हें
इक गिलास उनसे मंगाया तो खफा हो बैठे
माल उड़वाया महीनों जिन्हें ले ले के उधार
आज बिल उनको थमाया तो खफा हो बैठे
उमके जूड़े को हिमालय सा सजाकर हमने
फूल गोभी का लगाया तो खफा हो बैठे
आंखों-आंखों में चुराया था जिन्होंने हमको
घर से जब उनको उड़ाया तो खफा हो बैठे
घर में नीरव के निठल्लों का हुआ जब जमघट
दाल का पानी पिलाया तो खफा हो बैठे।
पं. सुरेश नीरव
९८१०२४३९६६

सोमवार, 16 जून 2008

निगाहों को बड़ा दिलकश नजारा मिल गया होता

cकिसी अंधे को लाठी का सहारा मिल गया होता
अगर उस दिन तेरा छत से इशारा मिल गया होता
न लेकर बैंड तुम आते न बजता मेरी शादी में
न कश्ती डूबती मेरी किनारा मिल गया होता
न भरते कान डैडी के तुम्हारे घर छुपे दुश्मन
जन्मपत्री में दोंनों का सितारा मिल गया होता
जुटाकर ईंट रोड़ों को बना लेते नया कुनबा
अगर भानुमती का पिटारा मिल गया होता
बगल में महिला कॉलेज के जो अपना घर बना होता
निगाहों को बड़ा दिलकश नजारा मिल गया होता
सहर होते ही मंदिर में जो जाती तू भजन करने
तेरे भजनों के सुर -में- सुर हमारा मिल गया होता
छुड़ाकर पिंड कविता से बड़ा अच्छा किया नीरव
नहीं तो मंच पर नीरव दुबारा मिल गया होता।
पं. सुरेश नीरव
मो.९८१०२४३९६६



रविवार, 15 जून 2008

तबीयत मगर है आज भी सलमान खान की।


बरसाती-ग़ज़ल
छत टपक रही है मेरे बूढ़े मकान की
बरसात लाई मुश्किलें सारे जहान की
बादल की टंकियों से क्यों पानी टपक रहा
टोंटी चुरा ली क्या किसी ने आसमान की
व्हिस्की के संग मंगोड़े हों रिमझिम फुहार में
फरमाइशें तो देखिए ठलुए जवान की
ड्रायर लगा- लगा के सुखानी पड़ी उसे
बारिश में भीगी इस कदर दाढ़ी पठान की
भेजे में गूंजती है मेढ़क की टर्र-टर्र
बारिश में रिपेयरिंग क्यों कराई कान की
भीगे बदन फुहार में लहरा के आ गये
रौनक जवान हो गई भुतहा दुकान की
तासीर देखिए ज़रा खैनी के पान की
बुड्ढा निकालता है अकड़ नौजवान की
नाक- कान -बाल - सभी खस्ता हाल हैं
तबीयत मगर है आज भी सलमान खान की।
पं. सुरेश नीरव
मों.९८१०२४३९६६

शुक्रवार, 13 जून 2008

उधारी खूब तुम रखना

एक कता...
झिड़कना मत झिड़कने में कोई अपना नहीं रहता
तुम्हें वो जड़ से खोदेगा जो मुंह से कुछ नहीं कहता
सभी लोगों से मिलने में उधारी खूब तुम रखना
उधारी का महल कर्जे की तोपों से नहीं ढहता।
पं. सुरेश नीरव

गुरुवार, 12 जून 2008

तुम्हारी याद आती है


हास्य-गजल
उठाकर क्राकरी महरी किचन में जब गिराती है
मैं आपे में नहीं रहता तुम्हारी याद आती है
निकट तोते के जब तोती कोई इठला के जाती है
फुदकता हूं मैं मेढक बनके तेरी याद आती है
किसी भी ठूंठ पर तितली जब अपने पर हिलाती है
सिसकते दिल के गुलदस्ते पे बिजली कौंध जाती है
पड़ोसन जब भी बल्बों को जलाती है बुझाती है
मेरा दिल लुपलुपाता है तमन्ना लड़खड़ाती है
हजामत को नहीं पैसे बढ़ी देखो मेरी दाढ़ी
रुपय्यों की हुई तंगी तुम्हारी याद आती है
अदा से गर्म डोसे पर वो जब चटनी लगाती है
गरीबों को कभी नीरव नहीं मिलता कोई साथी
है दिल की पासबुक खाली तुम्हारी याद आती है।
पं. सुरेश नीरव
मों-९८१०२४३९६६

बुधवार, 11 जून 2008

जवानी का हंसी सपना तुझे जब याद आएगा


हास्य-गज़ल
जवानी का हंसी सपना तुझे जब याद आएगा
सिसककर टूटी खटिया पर पड़ा तू भुनभुनाएगा
पुराना ठरकी है बूढ़ा न हरगिज बाज आएगा
दिखी लड़की तो नकली दांत से सीटी बजाएगा
निकल जाए हमारा दम बला से चार बूंदों में
मग़र हमको हकीम अपनी दवा पूरी पिलाएगा
पहन पाया न बरसों से बिचारा इक नई निक्कर
बनेगा जब भी दूल्हा वो नई अचकन सिलाएगा
है अपना दूधिया जालिम मसीहा है मिलावट का
भले ही कोसते रहिए हमें पानी पिलाएगा
जड़ें काटेगा पीछे से जो हँस के सामने आया
खुदा ने दी न चमचे को वो दुम फिर भी हिलाएगा
मिली हैं हूर जन्नत में मगर मिलती नहीं लैला
खुदेगी कब्र जब तेरी तो चांद अपनी खुजाएगा
सनमखाने में दीवाने सजा ले अपने वीराने
खिला दे टॉफी बुलबुल को मज़ा जन्नत का आएगा
पुराना-सा फटा, मैला लिए हाथों में इक थैला
बढ़ा के अपनी दाढ़ी मंचों पर गजल तू गुनगुनाएगा
मिले मेले में दुनिया के थके, हारे, बुझे चेहरे
करामाती है बस नीरव जो रोतों को हँसाएगा।
पं. सुरेश नीरव
मो.-९८१०२४३९६६

मंगलवार, 10 जून 2008

हमको साथी भी ऐसे मिले


गजल
हमको साथी भी ऐसे मिले
जैसे राजा को टूटे किले
पत्तियां,फूल, फल सब झरे
पेड़ आंधी में ऐसे हिले
हमको चलना भी तो आ गया
पांव पत्थर पे जब से छिले
चोट-दर-चोट खाकर हँसे
खत्म होंगे न ये सिससिले
अपनी ही गफलतों में रहे
कद्रदानों से कैसे गिले
हम थे नीरव मुखर हो गये
आप जब से हैं हम से मिले।
पं, सुरेश नीरव
मों.९८१०२४३९६६

सोमवार, 9 जून 2008

इन हमामों से हर कोई धुलकर गया

हास्य-गज़ल
कोई छुपकर गया कोई खुलकर गया
इन हमामों से हर कोई धुलकर गया
जिंदगी में किया जो भी अच्छा-बुरा
वो सभी कुछ तराजू पे तुलकर गया
नगमें गाती नहीं अब वो इकरार के
इतना गमगीन बुलबुल को बुल कर गया
हमको ऐसा हुनरमंद मिस्त्री मिला
जल रही थी जो बत्ती वो गुल कर गया
उनकी आंखों में दरिया है तेजाब का
जिसमें पत्थर भी डूबा तो घुलकर गया
बच्चे पैदा किये और खुद मर गया
काम जीवन में इतना वो कुल कर गया
सीनाजोरी ज़रा देखिए चोर की
सीनाताने वो लॉकअप से खुलकर गया
शौक से टे्न की चेन वो खींचता

क्यों पजामे के नाड़े को पुल कर गया
फ्लाप नीरव लगी फिल्म की हिरोइन
रोल हीरो मगर ब्यूटीफुल कर गया।
पं. सुरेश नीरव
मो.९८१०२४३९६६

शनिवार, 7 जून 2008

चंबल का दूसरा चेहरा भी है..


चंबल का दूसरा चेहरा भी है..

.चंबल के बीहड़ों की जब भी चर्चा चलती है तो अनायास ही बागी सरदार मान सिंह से शुरू हुई एक परंपरा लाखन सिंह, रूपा, पुतली बाई से चलकर मोहर सिंह, माधव सिंह,मलखान सिंह से होती हुई निर्भय गुर्जर तक पहुंचकर थोड़ा रुकती है और भविष्य के नामों के लिए बांहें फैलाने लगती है। मगर चंबल की यह घाटी महर्षियों की तपोभूमि और क्रंतिकारियों तथा कलाकारों की साधना स्थली रही है, यह बात दुर्भाग्य से हर बार अचीन्ही रह जाती है। पौराणिक गाथाओं की आभा से दीप्त-प्रदीप्त महर्षि भिंडी ( जिनके नाम से भिंड नगर बसा) और गालव ( जिनके नाम से ग्वालियर नगर बसा) की तपःस्थली के ही पुण्य-प्रसून थे-संगीत सम्राट तानसेन और बैजू बावरा। रायरू गांव की गूजरी, जो आगे चलकर राजा मानसिंह की रानी मृगनयनी बनती है,जिसने अपने पराक्रम से यवन सेना को पराजित करके तोमर वंश की यशःगाथा को इतिहास में दर्ज कराया था, वह इसी चंबल की माटी की बेटी थी। इसी चंबल की माटी के पुत्रों को बागी संबोधन का क्रांतिकारी चेहरा देनेवाले मैनपुरी षड्यंत्र कांड के पं.गैंदालाल दीक्षित ने मई गांव में ही बैठकर क्रांति का ताना-बाना बुना था और उनके शिष्य काकोरी कांड के महानायक पं. रामप्रसाद बिस्मिल (जिनके बाबा तंवरघारःअंबाह के थे ) ने भदावर राज्य के पिनाहाट और होलीपुरा में फरारी के दिनों में मवेशी चराते हुए मनकी तरंग और कैथराईन-जैसी कृतियों का सृजन किया था। प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की जब पूरे देश में लौ बुझने लगी थी तो चंबल और यमुना के दोआब में रूपसिंह और निरंजन सिंह ने तात्याटोपे और शाहजादा फिरोजशाह को साथ लेकर फिरंगी सेना को धूल चटाते हुए यहां आजादी का परचम फहराकर एक नया इतिहास लिख दिया था। यहां के लोकगीत लंगुरिया और सपरी में चंबल की माटी की सौंधी-सौंधी गंध महकती है। और शस्त्रीय संगीत में ग्वालियर घराना क्या हैसियत रखता है, यह बताना निहायत अनुत्पादक श्रम होगा। इस क्षेत्र के बुद्धिजीवी, चंबल के इस सांस्कृतिक आयाम को, जो कि दुर्भाग्यवशात् अचीन्हा ही रह जाता है,व्यापक फलक पर लाकर सर्वव्यापी बनाएं,इस सार्थक प्रयास की मैं उनसे पूरी शिद्दत के साथ उम्मीद करता हूं...एवमस्तु।।
विनयावनत
पं. सुरेश नीरव

शुक्रवार, 6 जून 2008

हम कहां जाएं


हास्य-गजल
छुपे हैं चोर थाने में पकड़ने हम कहां जाएं
दरोगा बन गया साला अकड़ने हम कहां जाएं
पलस्तर चढ़ गया पक्का हमारे दोनों हाथों में
टंकी है नाक पर मक्खी रगड़ने हम कहां जाएं
लगा है शौक पढ़ने का हमें यारो बुढ़ापे में
बंधी भैंसें मदरसे में तो पढ़ने हम कहां जाएं
खुजाकर सिर किया गंजा ना आई बात भेजे में
लिया है जन्म अगड़ों में पिछड़ने हम कहां जाएं
ना बिजली है ना पानी है ना सीबर है ना सड़के हैं
बसाया घर है यू.पी में उजड़ने हम कहां जाएं
कटे हैं सीरियल में दिन गुजारी रात फिल्मों में
जो नीरव घर में हो टी.वी. बिगड़ने हम कहां जाएं
पं. सुरेश नीरव
मो.९८१०२४३९६६

गुरुवार, 5 जून 2008

रिश्ता किसी ने खूब निभाया है प्यार का

हास्य गजल
रिश्ता किसी ने खूब निभाया है प्यार का
तोहफे में उसने भेजा है मच्छर बुखार का
खोया गधा है देखिए फिर से कुम्हार का
शायद मजाक उसने उड़ाया है प्यार का
इक डब्बा खाली भेज के हमको अचार का
यारों ने फार्मूला सिखाया है प्यार का
नामोनिशान मिट गया उसके बुखार का
चूरन कुछ ऐसा हमने चटाया है प्यार का
जब उनका खत पढ़ा हमें मिरगी-सी आ गई
इठला के उसने जूता सुंधाया है प्यार का
इक चॉकलेट खाते ही कर डाली फिक्स डेट
पागल ने कितना रेट घटाया है प्यार का
गन्ने-सा रोज चूस के हमको किया रिजेक्ट
कैसा जनाजा उसने उठाया है प्यार का
नीरव की टूटी खाट भी नीलाम हो गई
जिस दिन से चैक उसने भुनाया है प्यार का।
पं. सुरेश नीरव
मो.९८१०२४३९६६


क्या आप कल के लिए

क्या आप कल के लिए
हास्य-गजल
तुक भिड़एंगे क्या आप कल के लिए
गीत गाएंगे क्या आप कल के लिए
नाश्ते में कनस्टर को खाली किया
भर के लाएंगे क्या आप कल के लिए
आज रेंके तो कर्फ्यू शहर में लगा
गुल खिलाएंगे क्या आप कल के लिए
आखिरी थी अठन्नी उड़ी इश्क में
अब बचाएंगे क्या आप कल के लिए
दिल में जो कुछ भी था हिनहिनाया सभी
बिलबिलाएंगे क्या आप कल के लिए
जितना मक्खन था सब मल दिया बॉस को
दुम हिलाएंगे क्या आप कल के लिए
पूरा वेतन महाजन के हत्थे चढ़ा
अब पकाएंगे क्या आप कल के लिए
इक पजामा था नीरवजी चोरी हुआ
अब सिलाएंगे क्या आप कल के लिए?
पं. सुरेश नीरव
मो.९८१०२४३९६६

मंगलवार, 3 जून 2008

आज का इनसान


गजल
सलवटोंवाला बिछौना आज का इनसान
वासना का है खिलोना आज का इनसान
क्यों किसी शैतान की तीखी नजर लगती
हो गया काला डिठोना आज का इनसान
धमनियों में है तपिश चढ़ती जवानी की
ढूंढता है कोई कोना आज का इनसान
ओढ़ली जबसे शरारत बेचकर ईमान
दूर से लगता सलौना आज का इनसान
नाचती है अब सियासत देश में नंगी
है मिनिस्टर-सा घिनौना आज का इनसान
पूरे आदमकद हुए हैं पाप के पुतले
और होगा कितना बौना आज का इनसान
आ गया नीरव चलन में कैसा तिरछापन
हो गया बिल्कुल तिकोनाआज का इनसान।
पं. सुरेश नीरव
मो.९८१०२४३९६६

रविवार, 1 जून 2008

लिख देंगे।

हास्य-गजल-
रोज-रोज के झगड़ों पर अब हम किताब लिख देंगे
तेरे हर इक लव लैटर का हम जवाब लिख देंगे
तेरी मम्मी को नुस्खे में हम जुलाब लिख देंगे
तेरे डैडी को हड्डी में हम कबाब लिख देंगे
मेकअप करके मिलीं अगर खानाखराब लिख देंगे
जिस दिन तुमने जेब न काटी इंकलाब लिख देंगे
हब्शी-से तेरे होंठों को लाजवाब लिख देंगे
जब भी याद करोगे हम हाजिर जनाब लिख देंगे
सिकुड़े से सींकिया बदन पर हम शवाब लिख देंगे
निचुड़े गालों पर उंगली से हम गुलाब लिख देंगे
तेरे तन की चुस्त पैंट को हम जुराब लिख देंगे
तेरे स्लीवलैस ब्लाउज को हम शराब लिख देंगे
मावस जैसे इस मुखड़े को माहताब लिख देंगे
नीरवजी अनपढ़ धन्नो को मैमसाब लिख देंगे।
पं. सुरेश नीरव
मो.-९८१०२४३९६६