रविवार, 13 अप्रैल 2008

आधुनिका

कैसे कह दूं कि तुम
एक अगर्भित पराग कण हो
तुम्हारी देह का कुंआरा ईथर
वासना के क्लोरोफार्म से
बहिरंतर दहक रहा है
और तुम्हारी आखों के कच्चे हरेपन में
मादकता का अल्कोहल महक रहा है
अरे तुम तो हो एक चुंबकीय गुड़िया
जिस के चरित्र का गुरुत्व केंद्र
दौलत के रडार के इशारे पर
झूमता है,कसमसाता है
तुम्हें देखकर मेरे मन का यूरेनियम पिघलता है
सच तुम पर बड़ा तरस आता है
सोचता हूं कि तथाकथित आधुनिकता का
पतन से कितना गहरा नाता है?
पं. सुरेश नीरव
मो.९८१०२४३९६६

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