गुरुवार, 17 अप्रैल 2008

टूट जाएगा वहम तुम्हारा

सांझ मत लड़ो उजाले से वर्ना टूट जाएगा वहम तुम्हारा
करने का दम रखते हैं तब तो स्वीकारा युग ने अहं हमारा
जिंदगीभर लड़े हम अंधेरों की झीलों से
क्योंकि उत्साह पुकारता है हमें बहुत दूर मीलों से
वादी ने जितना सुलगाया हम उतने सुर्ख हुए
तूफानो तरसो नहीं मिलेगा नमन हमारा
सांझ मत लड़ो उजाले से वर्ना टूट जाएगा वहम तुम्हारा
करने का दम रखते हैं तब तो स्वीकारा युग ने अहं हमारा
मौसम का रुख वे देखें जो दुबले हों
चऱण वंदना वे सीखें जो बगुले हों
हम विद्रोही मन लड़ते रहें स्वयं से स्वर नहीं बनेगा नरम हमारा
सांझ मत लड़ो उजाले से वर्ना टूट जाएगा वहम तुम्हारा
करने का दम रखते हैं तब तो स्वीकारा युग ने अहं हमारा
अरे हारें जो हालात से वो आदमी अधूरे हैं
हम भीतर और बाहर से आदम कद पूरे हैं
दृढता नियति रही मेरी हर मौसम मैं
तूफानो तरसो नहीं मिलेगा नमन हमारा
सांझ मत लड़ो उजाले से वर्ना टूट जाएगा वहम तुम्हारा
करने का दम रखते हैं तब तो स्वीकारा युग ने अहं हमारा
औसत इंसानों का मंजिल लक्षय रहा
हमने मंजिल त्यागीं राहों का साथ गहा
मंजिल हम राही लंबी राहों के बस चलते रहना धर्म हमारा
सांझ मत लड़ो उजाले से वर्ना टूट जाएगा वहम तुम्हारा
करने का दम रखते हैं तब तो स्वीकारा युग ने अहं हमारा।
पं. सुरेश नीरव
मो.९८१०२४३९६६

2 टिप्‍पणियां:

Anita kumar ने कहा…

सभी कविताएं एक से बढ़ कर एक हैं।

Unknown ने कहा…

सुरेश जी ,यह मेरी सबसे प्रिय कविताओं में से एक है, आती सुन्दर🙏🏼👍