हास्य-गज़ल
कोई छुपकर गया कोई खुलकर गया
इन हमामों से हर कोई धुलकर गया
जिंदगी में किया जो भी अच्छा-बुरा
वो सभी कुछ तराजू पे तुलकर गया
नगमें गाती नहीं अब वो इकरार के
इतना गमगीन बुलबुल को बुल कर गया
हमको ऐसा हुनरमंद मिस्त्री मिला
जल रही थी जो बत्ती वो गुल कर गया
उनकी आंखों में दरिया है तेजाब का
जिसमें पत्थर भी डूबा तो घुलकर गया
बच्चे पैदा किये और खुद मर गया
काम जीवन में इतना वो कुल कर गया
सीनाजोरी ज़रा देखिए चोर की
सीनाताने वो लॉकअप से खुलकर गया
शौक से टे्न की चेन वो खींचता
क्यों पजामे के नाड़े को पुल कर गया
फ्लाप नीरव लगी फिल्म की हिरोइन
रोल हीरो मगर ब्यूटीफुल कर गया।
पं. सुरेश नीरव
मो.९८१०२४३९६६
सोमवार, 9 जून 2008
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1 टिप्पणी:
सम्मानंनीय श्री नीरवहम् जी भोपाल के कार्यक्रम और निवास प्र भेट हुए वर्षों गुजर गये कोई संपर्क नहीं हुआऽअप्कि बहुमुखी प्रतिभा सेह्म सब अवीभूत थे आपके दोहों / ग़ज़लों और तमाम स्रजन में समय,समाज इतिहास को भलीभाँति समेटा गया है की पाठक को विमोहित क्र लेता है,मुझे भी आपसे आशा थी की मेरे ब्लॉग:कवितमेआनन्द.ब्लोग्स्पोत .कॉम प्र आप मुझे कुच्छ नया करने के लिए दिशा निर्देस्श देंगें अभी भी आशान्वित हूँ .डाक्टर मधु चतुर्वेदी जी से तो भोपाल में भेट हुई पर आपसे नही हो सकी अब यों ही आइए मिलें एक दूसरे की खाई खबर लें अभी कनाडा में हूँफिर अमेरिका में फ़रवरी तक रहूँगा.
फिर भोपाल.
डाक्टर आनंद जे जे राम
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