गुरुवार, 12 जून 2008

तुम्हारी याद आती है


हास्य-गजल
उठाकर क्राकरी महरी किचन में जब गिराती है
मैं आपे में नहीं रहता तुम्हारी याद आती है
निकट तोते के जब तोती कोई इठला के जाती है
फुदकता हूं मैं मेढक बनके तेरी याद आती है
किसी भी ठूंठ पर तितली जब अपने पर हिलाती है
सिसकते दिल के गुलदस्ते पे बिजली कौंध जाती है
पड़ोसन जब भी बल्बों को जलाती है बुझाती है
मेरा दिल लुपलुपाता है तमन्ना लड़खड़ाती है
हजामत को नहीं पैसे बढ़ी देखो मेरी दाढ़ी
रुपय्यों की हुई तंगी तुम्हारी याद आती है
अदा से गर्म डोसे पर वो जब चटनी लगाती है
गरीबों को कभी नीरव नहीं मिलता कोई साथी
है दिल की पासबुक खाली तुम्हारी याद आती है।
पं. सुरेश नीरव
मों-९८१०२४३९६६

1 टिप्पणी:

समय चक्र ने कहा…

पड़ोसन जब भी बल्बों को जलाती है बुझाती है
मेरा दिल लुपलुपाता है तमन्ना लड़खड़ाती है
दिल की पासबुक खाली तुम्हारी याद आती है।

bahut sundar abhivyakti. suresh ji ko dhanyawaad.