मंगलवार, 10 जून 2008

हमको साथी भी ऐसे मिले


गजल
हमको साथी भी ऐसे मिले
जैसे राजा को टूटे किले
पत्तियां,फूल, फल सब झरे
पेड़ आंधी में ऐसे हिले
हमको चलना भी तो आ गया
पांव पत्थर पे जब से छिले
चोट-दर-चोट खाकर हँसे
खत्म होंगे न ये सिससिले
अपनी ही गफलतों में रहे
कद्रदानों से कैसे गिले
हम थे नीरव मुखर हो गये
आप जब से हैं हम से मिले।
पं, सुरेश नीरव
मों.९८१०२४३९६६

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