मंगलवार, 17 जून 2008

तो खफा हो बैठे।

हास्य-ग़ज़ल
उनकी कुर्सी को हिलाया तो खफा हो उठे
पिंड मुश्किल से छुड़ाया तो खफा हो बैठे
शेर जिनके वो सुनाते थे बताकर अपने
अस्ल शायर से मिलाया तो खफा हो बैठे
दिल के नुस्खों के बड़े चर्चे सुने थे हमने
चीरकर दिल जो दिखाया तो खफा हो बैठे
चाय हर रोज बनाकर पिलाते थे उन्हें
इक गिलास उनसे मंगाया तो खफा हो बैठे
माल उड़वाया महीनों जिन्हें ले ले के उधार
आज बिल उनको थमाया तो खफा हो बैठे
उमके जूड़े को हिमालय सा सजाकर हमने
फूल गोभी का लगाया तो खफा हो बैठे
आंखों-आंखों में चुराया था जिन्होंने हमको
घर से जब उनको उड़ाया तो खफा हो बैठे
घर में नीरव के निठल्लों का हुआ जब जमघट
दाल का पानी पिलाया तो खफा हो बैठे।
पं. सुरेश नीरव
९८१०२४३९६६

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