बुधवार, 18 जून 2008
कर्ज में डूबे हैं फिर भी शान बाकी है
जम के चोरी कीजिए दूकान बाकी है
छोड़िए कटपीस पूरा थान बाकी है
बह गई कश्ती अभी तूफान में
कर्ज में डूबे हैं फिर भी शान बाकी है
रुक न पाएगी कभी फरमाइशें उनकी
जब तलक मेरे बदन में जान बाकी है
वैसे तो चलती है कैंची-सी जुबां उनकी
चुप रहेंगे मुंह में जब तक पान बाकी है
लिख दिए मिसरे ग़ज़ल के उनके होंठों पर
उस फसाने का मगर उन्वान बाकी है
है फरिश्तों से भी ऊंचा आज वो इनसान
जिसमें थोड़-सा अभी ईमान बाकी है
इस कदर जज्बात को निगला मशीनों ने
यंत्र-सा चलता हुआ इनसान बाकी है
कान में नीरव के बोला बेहया लीडर
लूटने को पूरा हिंदुस्तान बाकी है।
पं. सुरेश नीरव
मो.-९८१०२४३९६६
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
3 टिप्पणियां:
बहुत शान्दार रचना है.ऐसे जानदार लेखन के लिये बधाई..
आपके ब्लौग की सदस्यता किस प्रकार ली जा सकती है?
अच्छाई की बात छोडो, बुराई की बात कीजिये,
झूठ फरेब इमान बना है ये तो सोचा कीजिये .
भगवान् के सामने रो-रोकर, क्यों प्रार्थना करते,
यही नारियल लेजाकर, उनके दर पर फोड़ा कीजिये
[आपकी प्रेरणा से रचित]
[] राकेश 'सोऽहं'
एक टिप्पणी भेजें