हास्य-गजल
चलो अंधे कुंए में आज उतरकर हम भी देखेंगे
अंधेरे आबनूसी हैं संवरकर हम भी देखेंगे
सुना है जादू बिकता है तेरी आंखों के प्लाजा में
तेरे जलवों की गलियों से गुजरकर हम भी देखेंगे
हुस्न की ब्रेड का मक्खन बड़े अंदाजवाला है
मिला जो चांस तबीयत से कुतरकर हम भी देखेंगे
सुना है शोख तितली ने थकाया सारे भंवरों को
कभी अमराई में उसको पकड़कर हम भी देखेंगे
जड़ें होती नहीं फिर भी हरे रहते हैं मनीप्लांट
जड़ों से इसलिए यारो उखड़कर हम भी देखेंगे।
पं. सुरेश नीरव
मों.९८१०२४३९६६
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